धुवस्वामिमी में अपने प्रिय पात्र के चरित्र की विशेषताओं का वर्णन कीजिए
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चंद्रगुप्त –
चंद्रगुप्त इस नाटक का नायक है वह प्रमुख पात्र है , और अधिकांश घटनाओं का केंद्र बिंदु होने के साथ-साथ अंतिम फल का भोक्ता भी है। सम्राट समुद्रगुप्त का द्वितीय पुत्र चंद्रगुप्त अपने पिता के द्वारा युवराज घोषित किया जा चुका था , किंतु रामगुप्त ने षड्यंत्र करके ना केवल राज सिंहासन पर अधिकार कर लिया , बल्कि उसकी बाकी सत्ता उसकी पत्नी ध्रुवस्वामिनी को भी अपनी पत्नी बना लिया। चंद्रगुप्त और ध्रुवस्वामिनी एक दूसरे से प्रेम करते हैं , चंद्रगुप्त कर्तव्यनिष्ठ , साहसी , वीर कुल मर्यादा का रक्षक , स्वाभिमानी युवक है। कुल मर्यादा एवं नारी के गौरव की रक्षा के लिए वह अपने प्राणों का मोह त्याग कर ‘ शकराज ‘ के दुर्ग में जाने का दुस्साहस पूर्ण कार्य करता है , और शकराज का वध कर देता है। वह एक आदर्श प्रेमी है तथा अपनी प्रिय पत्नी ध्रुवस्वामिनी के आत्म सम्मान एवं गौरव की रक्षा करने के लिए स्वयं को संकट में डालने से नहीं चुकता शील , विनय एवं कुल मर्यादा की रक्षा हेतु वह अपने अग्रज रामगुप्त को राज्य का उत्तराधिकारी बन जाने देता है। किंतु जब मंदाकिनी उसके सोए हुए स्वाभिमान को जागृत करती है तो वह स्वयं को धिक्कारते हुआ कहता है –
” मैं पुरुष हूं ? नहीं ! मैं अपनी आंखों से अपना वैभव और अधिकार दूसरों को अन्याय से छिनता देख रहा हूं और मेरी वाग्दत्ता पत्नी मेरी अनुत्साह से मेरी नहीं रही। “
शक दुर्ग में जब रामगुप्त के कहने पर चंद्रगुप्त को बंदी बनाकर लोहा श्रृंखलाओं में जकड़ दिया जाता है , तब ध्रुवस्वामिनी की प्रेरणा पर बंदी चंद्रगुप्त लोह श्रृंखला तोड़ देता है , और शिखर स्वामी , रामगुप्त को वहां से चले जाने के लिए कह देता है। अंत में परिषद के निर्णय पर ध्रुवस्वामिनी , रामगुप्त से मोक्ष (तलाक) पा लेती है और उसका विवाह चंद्रगुप्त से हो जाता है। यही नहीं चंद्रगुप्त को गुप्त वंश का राजा भी बना दिया जाता है। इस प्रकार अंतिम फल का भोक्ता भी चंद्रगुप्त ही है।
अतः उसके नाट्य तत्व में कोई संदेह नहीं निश्चित रूप से चंद्रगुप्त प्रसाद जी का एक सशक्त पात्र है