ध्यान लगाकर जो तुम देखो,
इस जग की सुघड़ाई को।
बात-बात में पाओगे तुम,
ईश्वर की चतुराई को।
ये सब भाँति-भाँति के पक्षी,
ये सब रंग-रंग के फूल।
यह बन की लह-लही लता,
नव ललित-ललित शोभा का मूल।
ये नदियाँ, ये झील सरोवर,
कमलों पर भौंरों की गूंज।
बड़े सुरीले बोलों से ये,
गूंज रही कोयल की कुंज।
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