धन घमंड नभ गरजत घोरा, प्रिया हीन डरपत मन मोरा |
दामिनी दमक रहहिं धन माहीं, खल के प्रीति जथा थिर नाहीं।
वरषहि जलद भूमि निअराएँ जथा नवहि बुध विदया पाए
बूंद अधात सहहि गिरि कैसे , खल के बचन संत सह जैसे । सरल भावार्थ लिखिए
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??????????....sidha javab ni h
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