धन की खोज
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प्र
स्तुत पाठ में वर्षों के अध्यापन के बाद गुरु अपने शिष्यों की परीक्षा लेना
चाहता है कि वे व्यावहारिक जीवन में उसके द्वारा प्रदत्त शिक्षा के आदर्शों
को कहाँ तक ग्रहण कर पाए है? परंतु वास्तविक अर्थों में केवल एक ही
छात्र उत्तीर्ण होता है। क्यों और कैसे? यह इस कहानी को पढ़ने के पश्चात् स्पष्ट
हो जाता है। जातक कथा से उद्धृत यह पाठ बच्चों के नैतिक विकास की दृष्टि से
सार्थक सिद्ध होगा।
प्राचीन काल की बात है।
एक गुरुकुल था-विशाल और प्रसिद्ध। उसके आचार्य भी बहुत ही विद्वान और
यशस्वी थे।
एक दिन आचार्य ने सभी विद्यार्थियों को विद्यालय के प्रांगण में बुलाया और उनसे कहा,
"प्रिय छात्रो! मैंने तुम्हें एक विशेष प्रयोजन से बुलाया है। मेरे सामने एक समस्या है। मेरी
कन्या विवाह-योग्य हो गई है, किंतु उसका विवाह करने के लिए मेरे पास पर्याप्त धन
नहीं है। समझ में नहीं आता कि क्या करूँ?"
कुछ विद्यार्थी, जिनके पिता धनवान
थे, आगे बढ़े और बोले, "गुरुदेव,
हम अपने माता-पिता से धन
माँग लाएंगे। आप उसे गुरु-
दक्षिणा के रूप में स्वीकार कर
लीजिएगा।"
आचार्य बोले, "मुझे
इसमें संकोच होता है। तुम्हारे
a परिवार वाले सोचेंगे कि गुरु
लोभी है। अपनी कन्या का
विवाह शिष्यों के धन से करना चाहता है।" आगे
बढ़े हुए शिष्य संकोचवश पीछे हट गए। आचार्य सोच में पड़े रहे।
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in search of treasure
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