Hindi, asked by hiramanitudu834, 1 month ago

धन प्रवाह का सिद्धांत किसने प्रतिपादित किया था​

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Answered by syed2020ashaels
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सही उत्‍तर है → दादाभाई नौरोजी। मनी ड्रेन भारत की वह राशि और अर्थव्यवस्था थी जो भारतीयों के लिए सुलभ नहीं थी। दादाभाई नौरोजी ने 1867 में 'धन की निकासी' की परिकल्पना का प्रस्ताव रखा, जिसमें दावा किया गया था कि ब्रिटेन भारत से अपनी सारी संपत्ति निकाल रहा है।

सबसे पहले दादाभाई नौरोजी ने अपनी पुस्तक "पॉवर्टी एंड अन-ब्रिटिश रूल इन इंडिया" में धन के पलायन पर अपने विचार रखे। भारत की अकूत संपत्ति भारत से इंग्लैंड जा रही थी। धन की यह अपार निकासी भारत को भीतर से कमजोर कर रही थी। आज हम इस लेख में दादाभाई नौरोजी के इसी सिद्धांत पर चर्चा करने जा रहे हैं। इस लेख में हम दादाभाई नौरोजी के धन निकासी के सिद्धांत को लेकर इतिहासकारों में चल रहे दो परस्पर विरोधी मतों पर भी चर्चा करेंगे और साथ ही धन निकासी के सिद्धांत के दुष्परिणामों को भी जानेंगे।

बीते 4 सितंबर को दादाभाई नौरोजी की 194वीं जयंती मनाई गई। ज्ञातव्य है कि दादाभाई नौरोजी देश की राष्ट्रीय चेतना को आंदोलित करने वाले प्रथम नेताओं में से एक थे। उन्हें भारत का ग्रैंड ओल्ड मैन भी कहा जाता है। उनका जन्म 1825 में वर्तमान गुजरात राज्य के नवसारी में हुआ था।

दादाभाई नौरोजी की प्रमुख देन

वह अपने शुरुआती दिनों से ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े हुए थे।

वे ब्रिटिश संसद के लिए चुने गए पहले भारतीय सदस्य थे।

1859 में उन्होंने पहला आंदोलन चलाया जो भारतीय सिविल सेवा में नियुक्ति से जुड़ा था।

1865 और 1866 में क्रमशः नौरोजी ने लंदन इंडियन सोसाइटी और ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की स्थापना में योगदान दिया। ये दोनों संगठन राष्ट्रवादी भारतीयों और भारतीयों के प्रति सहानुभूति रखने वाले ब्रिटेन के निवासियों को एक मंच पर लाने में मददगार साबित हुए।

ईस्ट इंडिया एसोसिएशन के सचिव के रूप में भारत आए और चंदा इकट्ठा करने के अलावा राष्ट्रीय जागरूकता को भी बढ़ावा दिया।

1885 में, नौरोजी बॉम्बे प्रेसीडेंसी एसोसिएशन के उपाध्यक्ष बने।

उन्हें गवर्नर लॉर्ड रे द्वारा बॉम्बे लेजिस्लेटिव काउंसिल में नामित किया गया था।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना में उनका महत्वपूर्ण योगदान था। वे तीन बार (1886, 1893 और 1906) इसके अध्यक्ष चुने गए।

1893 में, उन्होंने भारतीय संसदीय समिति के गठन में मदद की।

1895 में वे भारतीय व्यय पर रॉयल कमीशन के सदस्य बने।

दादाभाई नौरोजी ने 1901 में प्रकाशित अपनी पुस्तक 'पॉवर्टी एंड अन-ब्रिटिश रूल इन इंडिया' के माध्यम से पलायन सिद्धांत को प्रतिपादित किया।

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