Hindi, asked by sanketmanval12, 2 months ago

धनियों को है मौज रात-दिन हैं उनके पौ-बारे,
दीन दरिद्रों के मत्थे ही पड़े शिशिर दुख सारे ।
वे खाते हैं हलुवा-पूड़ी, दूध-मलाई ताजी,
इन्हें नहीं मिलती पर सूखी रोटी और न भाजी ।​

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Answered by utkarsh2772
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धनियों को है मौज रात-दिन हैं उनके पौ-बारे,

दीन दरिद्रों के मत्थे ही पड़े शिशिर दुख सारे ।

वे खाते हैं हलुवा-पूड़ी, दूध-मलाई ताजी,

इन्हें नहीं मिलती पर सूखी रोटी और न भाजी ।

अर्थ:–

कवि कहते हैं कि शिशिर ऋतु की कष्टदायी ठंड के दुख केवल लाचार व ग़रीबों के लिए ही हैं। धनिक वर्ग के लोगों को तो रात-दिन आनंद ही आनंद है क्योंकि उनके पास ठंड से बचने की सब सुविधाएँ होती हैं।

धनिक वर्ग के लोग हलवा-पूड़ी और ताजी दूध-मलाई खाते हैं और ठंड का भी आनंद लेते हैं, लेकिन लाचार और ग़रीबों को सूखी रोटी व सब्जी भी नसीब नहीं होती।

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