धरा को उठाओ गगन को झुकाओ का भावाथ्
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कवी गोपालदास सक्सेना कि प्रसिद्ध कविता ‘धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ’ जिसके माध्यम से उन्होंने दीपावली को एक अलग नज़रिए से देखा है और कहा है कि बस दीपक जलानें से हमारे मन का अँधेरा नहीं मिट जाता बल्कि हमें अपने मन के अन्धकार को हटाने केलिए हमें अपने मन से द्वेष और घृणा को हटाना होगा और दूसरों के प्रति प्रेम भाव रखना होगा। जैसे दिया खुद जल के प्रकाश फैलाता है ठीक उसी प्रकार हमें भी दिए के प्रति दूसरों के जीवन से अन्धकार को हटानें का प्रयत्न करना चाहिए।
Explanation:
दीपावली का त्यौहार हमारे भारत वर्ष में काफी धूम-धाम से मनाया जाता है. इस दिन चारों ओर रौशनी ही रौशनी होती है, हम पटाखे जलाते हैं, मिठाइयां खाते हैं और बड़े ही ख़ुशी से यह उत्शव मनाते हैं। हर तरफ हसी ख़ुशी का माहोल होता है पर क्या आपने उन बच्चों के बारे में सोचा है जो इस ख़ुशी के दिन भी उदाश रहते हैं, उनके पास अलग-अलग तरह के मीठे व्यंजन तो दूर कि बात है बल्कि अपना पेट भरने केलिए भी पैसे नहीं होते हैं। हमारे लिए तो यह दीपावली का त्यौहार खुशयां और रौशनी से भरा हुअ होता है परन्तु उनके जीवन में तो अँधेरा ही छाया होता है, क्या फायदा ऐसे दिए का जो किसी के जीवन में उजाला ना कर सके। हम त्योहारों पे कितना पैसा बरबाद करते हैं पर कभी यह नहीं सोचते हैं कि उस में से थोड़े से पैसे बचा के हम उन गरीब और असहाय बच्चों कि भी मदद कर दें, इससे उनकी सारी परेशानियां तो दूर नहीं होंगी परन्तु उनके जीवन में ख़ुशी कि एक छोटी सी किरण तो आएगी, कुछ पल केलिए ही सही पर उनके चेहरे पर मुस्कान की चमक तो आएगी। हमें बस थोड़ी सी ख़ुशी ही तो देनी है उन बच्चों को और उन्हें एहसास दिलाना है कि त्यौहार सिर्फ हमारा ही नहीं उनका भी है।
प्रसिद्ध कवी गोपालदास सक्सेना जिन्हें विशेषतया हम सब ‘नीरज’ नाम से जानते हैं उन्हों नें अपने कविता ‘धरा को उठाओ, गगन को झुकाओ’ के माध्यम से इस बात को दर्शाने कि चेष्टा कि है।
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