धर्म अलग, भाषा अलग, फिर भी हम सब एक,
वो छोटा, मैं हूँ बड़ा, ये बातें निल,
उड़कर सिर पर बैठती, निज पैरों की धूल ।
प्र.)
रचनाएं,
पंजाबी
जफरत ठंडी आग है, इसमें जलना छोड़,
टूटे दिल को प्यार से, जोड़ सके तो जोड़ ।
परिटेड
नेपाली
पौधे ने बाँट नहीं, नाम पूछकर फूल,
हमने ही खोले बहुत, स्वारथ के हरफूल ।
the
विविध रंग करते नहीं, हमको कभी अनेक ।
नहीं
जो भी करता प्यार बो, पा लेता है प्यार,
प्यार नकद का काम है, रहता नहीं उधार ।
जरें-जर्रे में खुदा, कण-कण में भगवान,
लेकिन 'जरें' को कभी, अलग ना 'कण' से मान ।
इसीलिए हम प्यार की, करते साज-सम्हार,
नफरत से नफरत बढ़े, बढ़े प्यार से प्यार ।
भाँति-भाँति के फूल हैं, फल बगिया की शान,
फल बगिया लगती रही, मुझको हिंदुस्तान ।
हम सब जिसके नाम पर, लड़ते हैं हर बार,
उसने सपने में कहा, लड़ना है बेकार !
कितना अच्छा हो अगर, जलें दीप से दीप,
ये संभव तब हो सके, आएँ दीप समीप ।।
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Answers
Answer:
प्रस्तुत दोहों में जहिर कुरेशी जी ने छोटे- बड़े के भेद मिटाने, नफ़रत, स्वार्थ आदि छोड़ने के लिए प्रेरित किया है।
वाह कहते हैं, कि वह छोटा और मै बड़ा यह बाते किसी भी मूल की नहीं है। ऐसी सोच के कारण अपनी गलतियों के बावजूद भी मनुष्य खुद को बड़ा समझने लगता है। नफरत ठंडी आग है, मनुष्य ने किसी की नफरत में जलना छोड़कर किसी के टूटे हुए दिल को जोड़ना सीखना चाहिए। स्वार्थ का वर्णन करते हुए वह कहते हैं, की पौधे ने फूल देते समय किसी से अपना नाम नहीं पूछा, फिर भी हम लोग स्वार्थी होते है। कवि एकता पर यह कहते हैं, की हम सभ धर्म और भाषा से अलग होने के बावजूद भी एक ही है और हमारे विविध रंग हमे एकदुसरे से अलग नहीं कर सकते हैं। हमे सबसे प्यार से बर्ताव करना चाहिए, क्यों कि, जो प्यार करते है वे प्यार वापस पा लेते हैं। अतः प्यार उधार नहीं हो सकता। कवि आगे कहते हैं कि इस धरती के ज़र्रे ज़र्रे मेंक (कण कण में) खुदा है और कण कण मेंभगवान भी है। लेकिन हमे ज़र्रे को कण से अलग नहीं मानना चाहिए। अर्थात्, भगवान् एक ही है ऐसा यहां सुझाया है। हमे प्यार का संभाल करना चाहिए क्यों कि प्यार से प्यार बढ़ता है पर नफरत से नफरत बढ़ती है। एक बगीचे में भिन्न भिन्न प्रकार के फूल रहते हैं, तो वह बगीचा अच्चा लगता है, उसी प्रकार यह हिन्दुस्तान है जिसमे तरह तरह के लोग एकसाथ रहते हैं। कवि कहते हैं कि हमे लड़ना छोड़ देना चाहिए, लड़ने से किसी का भला नहीं होता। वे कहते हैं कि दीप से दीप तब जलेगा जब दो दीप समीप आएंगे, अर्थात् अच्छाई से अच्छाई तब बढ़ेगी जब अच्छे लोग एकसाथ आएंगे।
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