Hindi, asked by jg882006, 6 months ago

धर्म की आड़ पाठ के आधार पर बताइए कि धर्म और ईमान के नाम पर कौन कौन से ढोंग किए जाते हैं तथा धर्म के स्पष्ट चिंह क्या हैं ​

Answers

Answered by vijayababu3399
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Explanation:

साधारण से साधारण आदमी तक के दिल में यह बात अच्छी तरह से घर करके बैठ गई है कि धर्म के सम्मान की रक्षा के लिए प्राण दे देना उचित है।

दो घण्टे बैठकर पूजा करना, पाँच-वक्त नमाज अदा करना, अजाँ देना, शंख बजाना, फिर अपने को दिनभर बेईमानी करने और दूसरों को कष्ट पहुँचाने के लिए आज़ाद समझना। इसका नाम धर्म नहीं है।

चालाक लोग सामान्य लोगों की धार्मिक भावनाओं का शोषण करना अच्छी तरह जानते हैं। ये सामान्य लोग धर्म के बारे में कुछ नहीं जानते हैं। वे लकीर को पीटते रहना ही धर्म समझते हैं। चालाक लोग धर्म का भय दिखाकर उनसे अपनी बातें मनवा ही लेते हैं और उनसे फायदा उठा लेते हैं।

धर्म की आड़ पाठ के अनुसार धर्म के दो स्पष्ट चिह्न हैं-शुद्ध आचरण और सदाचार।

आज धर्म और ईमान के नाम पर उपद्रव किए जाते हैं और आपसी झगड़े करवाए जाते हैं। स्वार्थ सिद्धि के लिए लड़ाया जाता है। धर्म के नाम पर दंगे होते हैं और धर्म तथा ईमान पर जिद की जाती है। हर समुदाय का व्यक्ति दूसरे की जान लेने तथा जान देने के लिए तैयार है।

लेखक के अनुसार, धर्म के विषय में मानव स्वतन्त्र होना चाहिए। हर व्यक्ति आजाद हो। वह जो धर्म अपनाना चाहे, अपनाए। कोई किसी की स्वतन्त्रता में बाधा न खड़ी करे। धर्म का सम्बन्ध हमारे मन से, ईमान से, ईश्वर और आत्मा से होना चाहिए।

कुछ चालाक पढ़े-लिखे और चलते पुरज़े लोग, अनपढ़-गँवार साधारण लोगों के मन में कट्टर बातें भरकर उन्हें धर्माध बनाते हैं। ये लोग धर्म विरुद्ध कोई बात सुनते ही भड़क उठते हैं, और मरने-मारने को तैयार हो जाते हैं। ये लोग धर्म के विषय में कुछ नहीं जानते यहाँ तक कि धर्म क्या है, यह भी नहीं जानते हैं। सदियों से चली आ रही घिसी-पिटी बातों को धर्म मानकर धार्मिक होने का दम भरते हैं और धर्मक्षीण रक्षा के लिए जान देने को तैयार रहते हैं। चालाक लोग उनके साहस और शक्ति का उपयोग अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए करते हैं। उनके इस दुराचार के लिए लेखक चलते-पुरज़े लोगों का यथार्थ दोष मानता है।

देश में धर्म की धूम है-का आशय यह है कि देश में धर्म का प्रचार-प्रसार अत्यंत जोर-शोर से किया जा रहा है। इसके लिए गोष्ठियाँ, चर्चाएँ, सम्मेलन, भाषण आदि हो रहे हैं। लोगों को अपने धर्म से जोड़ने के लिए धर्माचार्य विशेषताएँ गिना रहे हैं। वे लोगों में धर्मांधता और कट्टरता भर रहे हैं। इसका परिणाम यह है कि साधारण व्यक्ति आज भी धर्म के सच्चे स्वरूप को नहीं जान-समझ सका है। लोग अपने धर्म को दूसरे से श्रेष्ठ ‘समझने की भूल’ मन में बसाए हैं। ये लोग अपने धर्म के विरुद्ध कोई बात सुनते ही बिना सोच-विचार किए मरने-कटने को तैयार हो जाते हैं। ये लोग दूसरे धर्म की अच्छाइयों को भी सुनने को तैयार नहीं होते हैं और स्वयं को सबसे बड़ा धार्मिक समझते

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