Hindi, asked by Siddishtic, 10 months ago

धर्म के आङ पर हमारे जीवन को कौन सदाचारी बना सकता हैं ?

Answers

Answered by dcgupta1973
8

Answer:

hamein  sadaiv se hi or aage bhi shishthachar hi sadachari banata hai.

Explanation:

Answered by ElegantSplendor
373

Answer:

"धर्म के नाम पर लड़ना उचित नहीं है" इस कथन से मैं शत प्रतिशत सहमत हूँ।

धर्म है क्या? ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग। समाज को जोड़ने का माध्यम। फिर आखिर धर्म के नाम पर झगड़ा क्यों? कोई भी धर्म चाहे वह हिन्दू हो, मुस्लिम हो, सिख हो, ईसाई हो, यहूदी हो या कोई भी हो आपस में बैर रखना कदापि नहीं सिखाता। क्या मुहम्मद ने कहा, इस्लाम श्रेष्ठ है? क्या जीसस ने कहा क्रिश्चियनिटी श्रेष्ठ है? नहीं; तो फिर हम क्यों लड़ते हैं? मनुष्य का धर्म चाहे कोई भी हो, सबसे बड़ा धर्म होता है परोपकार का, इंसानियत का। इस मार्ग का अनुसरण भी ईश्वर प्राप्ति ही कराने में सहायक है। मनुष्य हम भी हैं, किसी अन्य धर्म के अनुयायी भी मनुष्य ही हैं। हमारा समाज पढ़ लिख रहा हैं, किन्तु उस शिक्षा का अनुसरण नहीं कर रहा। अगर किया होता, तो हिटलर यहूदियों को नहीं मरवाता, अगर किया होता, तो धर्म के नाम पर राजनीति करने वाले पनपते ही नहीं। ठीक है, कुछ लोग आग लगाने का काम करते हैं, पर इसका यह मतलब नहीं कि हमे उनको बल देना चाहिए। वो आग लगाते हैं तो लगाएं, क्या हम बुझा नहीं सकते? धर्म के नाम पर लड़ेंगे, तो विश्वयुद्ध होंगे। धर्म के नाम पर लड़ेंगे तो न राम मिलेंगे, न ही माया। किसी भी विकसित समाज को उठा लीजिये, वहां आप पाएंगे कि सभी जन सहिष्णुता से रहते हैं। असहिष्णुता से केवल दंगे होंगे, बंटवारा होगा, भारत से पाकिस्तान क्यों बना? धर्म की लड़ाई।

इसमे गलती दूसरों की नहीं है। हमारी भी है। हम क्या कर रहें हैं? दूसरों को, राजनेताओं को दोष देने से पहले सोचना चाहिए, की हम इस आग को बुझाने के लिए क्या कर सकते हैं। केवल विचार प्रकट करने से समाज नही बदलता। अगर बदलता, तो युद्ध न होते। जब कहीं दंगा होता है, तो हम क्या करते हैं? बैठकर दंगा करने वालों की बुराई? उससे तो समाज सहिष्णु होगा नहीं। हम ये कर सकते हैं कि उनके बहकावे में ना आए और न ही दूसरों को आने दे। भारत विभिन्न धर्मों का देश है, अगर हम एकजुट होकर नहीं रहे, तो फिर से गुलाम होकर जीयेंगे। अतएव, धर्म के नाम पर बहस करने से, लड़ने से या अपना मत केवल धर्म के नाम पर देने से पहले यह सोचना चाहिए कि अगर मैं, दूसरे धर्म का होता, तो क्या मैं इसी का पक्ष लेता? जब धर्म बदलने से पक्ष बदल जा रहे हैं, तो फिर ये पक्षपात निरर्थक है। हमे यह सोचना चाहिए कि उस धर्म में, और इस धर्म में क्या समानताएं हैं। समानताएं हैं, आपस मे प्रेम, एकता और परोपकार के साथ रहना।

असली धार्मिक वो है, जो धर्म के सद्गुणों का आचरण करे, न कि वो, जो धर्म के नाम पर रक्तपात करे। जो ऐसा करता है, वही हिटलर, औरंगज़ेब बनकर एक ऐसे भविष्य का निर्माण करता है, जोकि अंधकारमय है। हिटलर को अपने अंतिम दिन जेल में काटने पड़े, औरंगज़ेब के कारण ही मुग़ल साम्राज्य का पतन हुआ। अगर हम अभी भी नहीं सम्भले, तो यह धर्म भी मनुष्य की रक्षा नहीं कर पायेगा।

जय भारत।

जय गांधी।

Similar questions