धर्म की कसौटी क्या है
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जो अपने अनुकूल न हो वैसा व्यवहार दूसरे के साथ नहीं करना चाहिये - यह धर्म की कसौटी है। श्रूयतां धर्म सर्वस्वं श्रुत्वा चैव अनुवर्त्यताम्। आत्मनः प्रतिकूलानि, परेषां न समाचरेत् ॥ (धर्म का सर्वस्व क्या है, यह सुनो और सुनकर उस पर चलो !
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