धर्म के लक्षण पर निबंध
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धर्म एक जीवनशैली है, जीवन-व्यवहार का कोड है। समझदारों, चिंतकों, मार्गदर्शकों, ऋषियों द्वारा सुझाया गया सात्विक जीवन-निर्वाह का मार्ग है, सामाजिक जीवन को पवित्र एवं क्षोभरहित बनाए रखने की युक्ति है, विचारवान लोगों द्वारा रचित नियम नैतिक नियमों को समझाइश लेकर लागू करने के प्रयत्न का एक नाम है, उचित-अनुचित के निर्णयन का एक पैमाना है और लोकहित के मार्ग पर चलने का प्रभावी परामर्श है।
निरपेक्ष अर्थ में 'धर्म' की संकल्पना का किसी पंथ, संप्रदाय, विचारधारा, आस्था, मत-मतांतर, परंपरा, आराधना-पद्धति, आध्यात्मिक-दर्शन, किसी विशिष्ट संकल्पित मोक्ष-मार्ग या रहन-सहन की रीति-नीति से कोई लेना-देना नहीं है। यह शब्द तो बाद में विभिन्न मतों/ संप्रदायों, आस्थाओं, स्थापनाओं को परिभाषित करने में रूढ़ होने लगा। शायद इसलिए कि कोई दूसरा ऐसा सरल, संक्षिप्त और संदेशवाही शब्द उपलब्ध नहीं हुआ। व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, जिम्मेदारी की पूर्ति और विशिष्ट परिस्थितियों में उचित कर्तव्य निर्वाह के स्वरूप को भी 'धर्म' कहां जाने लगा।
आइए, अब इन निम्नांकित तीन कथनों को पढ़िए। नीतिकारों और चिंतकों के ये कथन महत्वपूर्ण संकेत देते हैं। उन अंतरनिहित संकेत के मर्म को पहचानिए।
धृति:, क्षमा, दमोऽस्तेयं शौच: इन्द्रियनिग्रह:।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षमणम्।
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जीवन पर परम लक्षण
उद्या लिप्सा के इस युग में मनुष्य मानव अपने को असहाय अनुभव कर रहा है और इस यांची योग में वह स्वयं एक यंत्र बन गया है | क्या यंत्र का भी कई लक्ष्य होता है ?
चलते चलते गीत जाना ही उसकी नियति है |
इतना सारा बात जाल इतना सारा ज्ञान ! परंतु हम भारतीयों को निराशा क्यों हो ?दिग्विजय रघु का देश यही तो है जितना प्रखर प्रताप दिग दिगंत को दीप्त करता रहा और डालते समय खुद रम मिट्टी का पात्र में सीमित गया | बानो की सत्य पर सोने वाले अजय भिस्मा की बानी यही कही तो व्याप्त होगी जो अपने पराक्रम * सविता पर एक प्रश्न लिए चलेंगे और तुलसीदास ने भारत के माध्यम से अपने जीवन का प्रयोग श्रेया और एकमात्र विस्तर जो कुछ भी था कह दिया है |
मनुष्य के जीवन का एकमात्र लक्ष्य होना चाहिए - राष्ट्र सेवा और मानव सेवा और समाज सेवा | अपने देश पर ज्यादा सफल देकर दूसरे देश में और भी चला सफल दे सके |