धर्म की मार से ज्यादा बुद्धि की मार बुरी है |’ लेखक ने ऐसा क्यों कहा ?
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लेखक का विचार है कि विदेश में धन की मार है तो भारत में बुद्धि की मार है |यहां बुद्धि को भ्रमित किया जाता है |जो स्थान ईश्वर और आत्मा का है वह अपने लिए ले लिया जाता है |फिर इन्हीं नामों अर्थात धर्म ,ईश्वर ,ईमान ,आत्मा के नाम पर अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए आपस में लड़ाया जाता है |
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