धर्म का महत्व बताते हुए इसका अन्य सामाजिक संस्थाओं से संबंध स्पष्ट कीजिए
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धर्म मात्र बौद्धिक उपलब्धि ही नहीं है, वह मनुष्य की स्वाभाविक आत्मा है, परंतु वह शरीर और कर्म के आवरण से ढकी हुई है। इसीलिए वह अज्ञात है। आवरण से चैतन्य ढका हुआ है, पर उसका अस्तित्व विस्मृत नहीं है। सूर्य बादल से ढका हुआ है, पर वह अस्त नहीं है।
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