धर्म के विषय में कबीर का क्या दृष्टिकोण था?
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धर्म के विषय में कबीर का दृष्टिकोण
- कबीर का मन ऊंच-नीच की भावना से व्याकुल था | हिन्दू और मुसलमान दो ऐसे संप्रदाय थे, जिनमे हमेशा तनाव बना रहता था | कबीर ने सांप्रदायिक एकता स्थापित करने का अथक प्रयास किया |
- कबीर कहते हैं, "मंदिर, मूर्ति और मस्जिद को लेकर झगड़ा करना व्यर्थ है | ईश्वर तो एक ही हैं, चाहे उसे किसी भी नाम से पुकारा जाए |
- कबीर कहते हैं, "सांप्रदायिक व्यक्ति कभी असली धर्म को जान ही नहीं सकता | जिन्हें असली धर्म को जानना है, उन्हें सब प्रकार के संप्रदायों से मुक्त होना होगा |
- कबीर के मन में जो कुछ भी था, वह सब कुछ प्रकट हो जाता था | उन्होंने कहा, "मुझे हिंदुओं और तुर्कों कुछ लेना-देना नहीं है, मैं सबके साथ हूँ | मैं गुरु के आशीर्वाद से राम की भक्ति करता हूँ और उसी के गुण गाता हूँ | राम के भरोसे रह कर राजा या रंक सबको एक बराबर मानता हूँ |"
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