धरती का आँगन महके कर्मज्ञान-विज्ञान से,
ऐसी सरिता करो प्रवाहित खिले खेत सब धान से ।
अभिलाषाएँनित मुसकाएँ आशाओं की छाँह में,
पैरों की गति बँधी हुई हो विश्वासों की राह में । bhavart batao please give answer
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धरती का आँगन महके कर्मज्ञान-विज्ञान से,ऐसी सरिता करो प्रवाहित खिले खेत सब धान से । अभिलाषाएँ नित मुसकाएँ आशाओं की छाँह में, पैरों की गति बँधी हुई हो विश्वासों की राह में । ... फूल-फलों से हरी-भरी इस धरती का श्रृंगार हो ।
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