Hindi, asked by viklupuja, 7 months ago

धरती कितना देती है का कविता का सार लिखिए​

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Answered by shriya619
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Explanation:

सुमित्रानंदन पंत को प्रकृति के सुकुमार कवि की संज्ञा प्रदान की गई है। मूलत: प्रकृति से प्रेरणा प्राप्त कवि होने के कारण उनके काव्य में प्राकृतिक सौन्दर्य के बड़े हृदयग्राही चित्र मिलते हैं। पंत ने प्रकृति से संवेदनशीलता को ग्रहण किया था जो सीधे-सीधे उनके काव्य में अभिव्यक्त हुआ है। पंत की भाषा की सबसे बड़ी विशेषता उसकी चित्रात्मकता ( शब्दों द्‌वारा चित्र-रचना) है। इनके काव्य-ग्रंथों में पल्लव, गुंजन, ग्राम्या, स्वर्ण किरण, उत्तरा लोकायतन ( सोवियत नेहरू शांति पुरस्कार ) और चिदम्बरा ( भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार) विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। भारत सरकार ने इन्हें पद्‌मभूषण से भी सम्मानित किया है।

धरती रत्न प्रसविनी है क्योंकि वह रत्नों को जन्म देने वाली है परन्तु मनुष्य स्वार्थवश उसमें अपनी तृष्णा रोपता है और अपनी कामना को सींचता है। प्रस्तुत कविता में कवि अपने बचपन में लालच में आकर धरती में पैसे बो दिए। उस समय उसने सोचा था कि जिस तरह बीज बोने पर पौधा उगता है उसी तरह पैसे बोने से पैसों के प्यारे पौधे उग आएँगे। पैसे उगते नहीं हैं, इस बात से बालक अनजान था। पैसों के अंकुर नहीं फूटे। बालक को लगा कि धरती बंजर है । इसमें पैदा करने की कोई शक्ति नहीं है। कवि कहते हैं कि जब से उन्होंने पैसे बोए थे तब से लगभग आधी शताब्दी बीत गई है पर पैसों की फ़सल नहीं उगी। कई ऋतुएँ आईं और गईं पर बंजर धरती ने एक भी पैसा नहीं उगला। एक बार फिर से गहरे काले-काले बादल आसमान पर छाए और धरती को गीला कर दिया। मिट्‌टी नरम हो गई थी। कवि ने कौतूहल के वशीभूत होकर मिट्‌टी कुरेद कर घर के आँगन में सेम के बीज दबा दिए। कवि के शब्दों में -

मैंने कौतूहलवश, आँगन के कोने की

गीली तह को यों ही उँगली से सहलाकर,

बीज सेम के दबा दिए मिट्‌टी के नीचे,

भू के अंचल में मणि-माणिक बाँध दिए हों।

कवि को यह घटना याद नहीं रही। ये बीज ममता के तो थे पर इनको तृष्णा से नहीं सींचा गया था। सेम के अंकुर फूट गए थे। एक दिन संध्या समय टहलते हुए कवि की दृष्टि उन पर पड़ी। कवि उन्हें एकटक देखते रहे। उन अंकुरों का कवि ने बहुत सुंदर वर्णन किया है - कवि को लगा कि उन्होंने छोटे-छोटे छाते तान रखे हैं। कवि की कल्पना अत्यंत सटीक है, वर्षा ऋतु में छाते का बिम्ब अत्यंत मनमोहक है पर कवि ने प्रकृति के इन छोटे-छोटे पौधों में जीवन की अभिव्यक्ति की है। कवि के शब्दों में -

छाता कहूँ या विजय पताकाएँ जीवन की

या हथेलियाँ खोले थे वह नन्हीं, प्यारी -

धीरे-धीरे ये अंकुर पत्तों से लद कर झाड़ियाँ बन गए। कुछ समय के पश्चात आँगन में बेल फैल गई। आँगन में लगे बाड़े के सहारे वे सौ झरनों के समान ऊपर की ओर बढ़ने लगे। लताएँ फैल गईं। उन पर छोटे-छोटे तारों जैसे फूल खिले। सेम की फलियाँ लगीं जो बहुत सारी थीं। काफ़ी समय तक सेम की फलियाँ तोड़ते रहे और खाते रहे। कवि कहते हैं कि धरती माता अपने पुत्रों को कितना देती है किन्तु बचपन में लालच के कारण कवि ने इस तथ्य को नहीं समझा था।

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