धरती का दुख
झुक कर नीलगगन ने पूछा - क्यों वसुधे।
हरियाली सम्पन्न सुन्दरी फूलों में तू हँसती-खिलती
त्योहारों में गाती
अब क्यों इतनी उदास है? न ही तू मुस्काती! तू धीरे से बोली धरती तब -
हरियाली सम्पन्न कहाँ मैं? न मैं फूलों वाली,
त्योहारों में भीड़-भाड़ है, नहीं भावना प्यारी!
ऋतुओं का वह रूप नहीं मौसम का कोई समय नहीं
जीवन का कोई ढंग नहीं इंसां का कोई धरम नहीं
मेरे मानस पुत्रों को नज़र लग गई किसकी
उज़ड रहा सब ओर सभी कुछ बुद्धि फिर गई सबकी! रिश्तों की गरिमा गिर गई मूल्यों की महिमा मिट गई भटक रही दुन्तिया
सामी,अपने ही अपनों के दुश्मन और खून के प्यासे समझ रहे बलवीर स्वयं को एक दूजे को देकर झाँसे,
हारियाली में सूखा है, फूलों में रंग फीका हैं
त्योहार हो गया रीता है!
कहाँ खो गई नेक भावना
खरी उज्ज्वल उदात्त कामना!
जन-जीवन का बिगड़ा हाल
देख सभी की टेढ़ी चाल
रहती मैं दिन-रात उदास!
कक्षा में पठित काव्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सम्दाशों में लिखिए।
क. कविता में किन दोनों के बीच बातचीत हो रही है? ख. कविता में हरियाली संपन्न और फूलों में हंसने वाली किसे कहा गया है?
ग. कविता में उदास और न मुसकाने वाली कौन है?
घ. कविता के अनुसार किस समय लोगों की भीड़-भाड़ तो होती है पर उनमें आपसी प्यार की भावना नहीं होती है? ङ. आकाश ने धरती का जो वर्णन किया है, क्या धरती उससे सहमत हैं?
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(क) कविता में निलगगन और वशुधा के बीच हो रही है।
(ख) कविता में हरियाली संपन्न और फूलों में हंसने वाली वसुधा को कहा गया है।
(ग) कविता में उदास और न मुसकाने वाली वसुधा को कहा गया।
(घ) कविता के अनुसार त्योहार के समय लोगो की भीड़ - भाड़ होती है।
(ङ) आकाश ने धरती का जो वर्णन किया है, उससे धरती असहमत है।
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