CBSE BOARD X, asked by abhirock51, 1 year ago

धरती कहे पुकार के...
• सहनशील धरती
• सांप्रदायिकता से मुक्ति
• खुशहाल वातावरण-पर्यावरण​

Answers

Answered by swarnmai25
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Answer:

HERE IS YOUR ANSWER

Explanation:

हर छोटे-बड़े, अमीर-गरीब के चेहरे पर लाली खिला देने वाला लाल गुलाब हवा और पानी के स्वास्थ्य और स्वच्छता का प्रतीक भी है। कहते हैं कि प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अपनी अचकन में यह खूबसूरत फूल सजाते ही नहीं थे, दिल्ली स्थित तीनमूर्ति भवन के लॉन में फूलों की क्यारियों को सहलाने, सराहने और उनमें पानी डालने को भी तत्पर रहते थे।

इसी तीनमूर्ति भवन में स्थित प्लेनेटोरियम आज धरती और सौरमण्डल के रिश्तों और पर्यावरण की कहानी दुनिया-जहान को सुनाता है। साथ ही जगाता है जल, जंगल और जमीन के नाजुक रिश्तों के प्रति संवेदना। भारत के अन्तिम वायसराय लार्ड माउंटबेटन की पत्नी एडविना माउंटबेटन का 1960 में निधन हुआ तो प्रधानमंत्री नेहरू ने यहीं से गुलाब के फूलों का एक पूरा पोत भेजा था एडविना के प्रति संवेदना के प्रतीक स्वरूप।

यही सन 1960 वह मानक वर्ष है, जिसका हवाला देते हुए मौसम और पर्यावरण विषय से जुड़ी दुनिया की तमाम एजेंसियों ने समूची मानवता से अपील की है कि धरती माँ की गिरती सेहत का ध्यान रखो, ताकि तुम्हारे बच्चे और उन बच्चों के बच्चे भी सीख सकें खिलते गुलाबों संग हँसने का हुनर।

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Answered by AdarshAbrahamGeorge
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Explanation:

धरती कहे पुकार के पर निबंध....

सुन लो ओ धरती पुत्र! मैं धरती बोल रही हूँ। मैं तुमको पुकार रही हूँ, मेरी पुकार ध्यान से सुनो

मैं धरती हूं कहीं पर मैं बंजर सी हो गयी हूँ तो कहीं थोड़ी सी मुझमें हरियाली है। वृक्ष जो मेरे बेटे के समान उन्हें तुम काटते जा रहे हो। मेरी तुम से पुकार है मेरे बेटों वृक्षों को मत काटो इनके बिना में सूख के बंजर हो जाऊंगी।

मेरे संसाधनों का तुमने भरपूर दोहन किया। बिल्कुल निर्दयी होकर। अब मेरे अंदर कुछ नही बचा है क्योंकि तुम मुझे खोखला कर चुके हो।

मेरे पर्वतों को तुम काटते जा रहे हो। मेरी नदियों को तुम दूषित कर चुके हो। मेरी मिट्टी को तुम खराब कर चुके हो। जो स्वच्छ हवा मेरी सांसो में थी उसे भी तुम जहरीली कर चुको हो। मेरे गर्भग्रह में छिपे खनिजों को तुम लुटेरों की तरह लूटते ही जा रहे हो। मेरी हरियाली को तुमने नष्ट कर कंक्रीट के जंगलों का साम्राज्य खड़ा कर दिया है।

मैं चिल्ला रही हूँ, चीख रही हूँ। मैं मेरे वजूद को कतरा-कतरा मिटते देखती जा रही हूँ। लेकिन मैं संघर्ष कर नही हूँ अपना वजूद बचाने के लिये।

मैं तुमसे कहना चाहती हूँ कि अब मैं तुम्हारा बोझ उठा ने में असमर्थ हूँ। तुम अपनी संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ाते जा रहे हो। मुझमें इतनी सामर्थ्य नही है और न ही अब मेरे पास इतने संसाधन बचे हैं कि मैं कि तुम सबकी जरूरतों को पूरा कर सके। मैं तुम्हारी माँ हूँ। मैंने तुम्हें इतना कुछ दिया पर क्या तुमने कभी अच्छी संतान का कर्तव्य निभाया है? तुमने हमेशा मेरे साथ निर्दयतापूर्वक व्यवहार किया है। तुमने विकास के नाम पर मेरे साथ छल किया है और मेरी प्राकृतिक सुंदरता को नष्ट किया है।

मैं पुकार कर कह रही हूँ कि अभी भी समय है, संभल जाओ। अपनी इस माँ का सम्मान करना सीख लो। मेरा ध्यान रखो। मुझे इस तरह नष्ट करते रहोगे तो मैं नही बचूंगी। मेरा अस्तित्व है तो तुम सुरक्षित हो। जब मैं ही नही रहूँगी तो तुम्हारा भी वजूद नही बचेगा।

pls mark me as the brainlist....

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