धरती मां की क्या क्या विशेषताएं हैं ?
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भूगोल, भूगर्भशास्र, भू-भौतिकी, भूकंपविज्ञान, समुद्रविज्ञान तथा मृदा-रसायन धरती का अध्ययन करनेवाले विज्ञान हैं परंतु लोकवार्ता की धरती से पहचान वैसी ही है, जैसी एक बेटे की माँ से होती है। जीवन को 'धारण' करने के कारण यह 'धरती' है, जन्म से मृत्यु तक सबकुछ इसी पर होता है, इसलिए यह 'भू' है।-१ सबके भार सहन करने के कारण वह सवर्ंसहा है तथा समर्थ होने के कारण वह क्षमा है। धरती पर जल, थल, नदी, समुद्र, पहाड़, वन, द्वीप-द्वीपांतर, देश, जनपद, पुर, नगर तथा ग्राम का विस्तार है। वही विश्वंभरा है। सबको अन्न देने के कारण वह अन्नदा और अन्नपूर्णा है। पत्थर, औषधि तथा रत्नों की खान होने के कारण वह रत्नगर्भा और वसुंधरा है।
धरती-संबंधी अवधारणाएँ - धरती संबंधी अवधारणाओं को निम्नांकित नौ भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है (रेखाचित्र-२)-
(अ) मनोवैज्ञानिक प्रणाली
कथा-अभिप्राय
मानवी-संवेदना
अनुष्ठान
अभिव्यक्ति-सम्पदा
रेखाचित्र-२ : धरती-संबंधी अवधारणाओं का वर्गीकरण
(आ) भौतिकी प्रणाली
भौतिकी उपयोगितावादी दृ
धरती और हवा-पानी का संबंध।
(अ) मनोवैज्ञानिक प्रणाली
१. कथा -अभिप्राय
पुराकथा और लोककथाओं मे' धरती' के दैहिक, दैविक और भौतिक तीनों रुपों के अनेक प्रसंग हैं और इन प्रसंगों से धरती के प्रति मनुष्य के दृष्टिकोण एवं अवधारणाओं के विकास पर प्रकाश पड़ता है। उदाहरण के रुप में धरती-संबंधी कुछ कथा-अभिप्रायों की चर्चा की जा रही है-
१.१ भूलोक : धरती भी अनंत ब्रह्मांड का मात्र एक लोक है। ऐसे अन्य लोक भी हैं-यमराज का यमलोक, विष्णु का बैकुंठ लोक, इन्द्र का स्वर्ग, ब्रह्मा का ब्रह्मलोक, नागराज वासुकि का नागलोक, राजा बलि का पाताल लोक, वरुण का वरुण लोक, चंद्रलोक, ध्रुवलोक आदि। लोक कहानियों और पुराकथाओं में धरती के नीये पाताल है। इन कथाओं में ॠषि, परस्वी, अप्सरा, परी तथा देवता क्षण-मात्र में संकल्प और इच्छाशक्ति के द्वारा एक लोक से दूसरे लोक में आ और जा सकते हैं। पाताल का रास्ता पानी में होकर हे-समुद्र, नदी, तालाब और सरोवर में। नाग-लोक का रास्ता करील के नीचे साँप की बाँबी में होकर निकलता है। स्वर्ग के लिए विमाना का साधन है।
१.२. जल में से धरती का उद्धार : वाराह : एक कथा के अनुसार एक बार हिरण्यक्ष नाम के दैत्य ने धरती को जल में डुबा दिया तथा धरती की चटाई लौचकर उसे रसातल में ले गया। तब जल में से धरती को उबारने के लिए भगवान् विष्णु ने वाराह का अवतार धारण किया तब भूदेवी ने भगवान् विष्णु की स्तुति की।-२ धरती को वाराह की पत्नी कहा गया है।
एक अन्य कथा के अनुसार प्राचीन काल में आकाश से गिरते हुए और पृथ्वी से उड़ते हुए पंखवाले पर्वत धरती को प्रकंपित कर देते थे। यह वेदना धरती ने ब्रह्माजी से कही तब इंद्र ने पर्वतों के पंखों के नष्ट करनेक के लिए वज्र प्रहार किया, इसलिए हेद्र को पर्वतारि कहा गया है। इंद्र ने धरती के स्थिर किया।-३
एक अन्य प्रसंग में जब हेद्र को ब्रह्महत्या का दोष लगा तो उसने अपने हत्या-दोष को चार भागों में विभक्त किया और एक भाग धरती को दिया, जो धरती ने सड़ने के दोष को रुप में स्वीकारा।-४
१.३. भूभार-हरण : धरती गाय : 'भूभार-हरण' पुराकथाओं और लोककहानियों का एक बहुप्रचलित अभिप्राय है। जब धरती पर पाप और अनाचार बढ़ता है तथा धरती के बेटे दुखी हो जाते हैं, तब धरती गाय
का रुप धारण करके भगवान् विष्णु के पास जाकर 'गुहार' करती है। विष्णु धरती के भार को हरण करने के लिए अवतार लेते हैं। पुराकथाओं में बैल के रुप में धर्म तथा गाय के रुप में धरती का उल्लेख अनेक प्रसंगों में है।-५ एक कथा में कलियुग कसाई का रुप धारण करके गाय और बैल दोनों को पीट रहा था, तब परीक्षित ने कलियुग को दंडित करने का निश्चय किया था।-६ लोकगीतों में कलियुग का उल्लेख आता है-
डंडे भूप अबीजै धरती अल्प सुधा जल बरसेंगे।
१.४ धरती पर पहली सृ : वृक्ष वनस्पति : धरती पर पहली सृष्टि वृक्ष-वनस्पतियों के रुप में हुई, इसका सूत्र प्रचेता की कथा में विद्यमान है। प्राचीनबर्हि के पुत्र प्रचेता जब समुद्र के बाहर निकले तो उन्होंने देखा कि पृथ्वी पेड़ों से घिर गयी है। पृथ्वी पर जंगल ही जंगल हैं। उन्होंने वृक्षों की वृद्धि देखकर जंगलों को नष्ट करने के लिए निश्चय किया। बाद में वृक्षों के अधिपति-देवता ने उन्हें इस संकल्प से विरत किया और भेंट के रुप में मारिया नामक वृक्षकन्या समर्पित की।-७ एक अन्य कथा के अनुसार प्रियव्रत राजा के रथ के पहियों के कारण मेरु के चारों ओर जो सात गड्ढे बने, वे ही सप्त-समुद्र नाम से प्रसिद्ध हुए और जो सात द्वीप बने, वे प्लक्ष, जंबू, शाक, कुश, शाल्मलि आदि वृक्ष-वनस्पतियों के नाम से ही प्रख्यात हुए।-८ प्राचीन काल में स्थानों की पहचान वृक्षों की अधिकता के आधार पर ही की जाती थी जैसे पीपल वन, कदंब वन, कदली वन आदि। व्रज में ताल वन, कमोद वन, कदमखंडी आदि नाम इसी परम्परा की एक कड़ी हैं।