धरती पर उपलब्ध जल
•97.4% समुद्रों में खारा पानी के रूप में
भरा पड़ा है।
• 1.08% ध्रुवों पर बर्फ़ के रूप में जमा है।
.0.08% धरती पर पीने लायक अवस्था में।
उपलब्ध है।
उपयोग किया जा रहा जल
.23% उद्योगों में खर्च हो रहा है।
•8% घरेलू कार्यों में खर्च हो रहा है।
• 69% कृषि कार्यों में खर्च हो रहा है।
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Answer:धरती पर पानी
पानी की घटती उपलब्धता से सब परिचित हैं। अनुमान है कि आगामी दशकों में पानी की उपलब्धता इतनी कम हो जाएगी जिसमें अन्तरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार स्वस्थ जीवनयापन सम्भव नहीं है।
इस निरन्तर उभरती हुई कमी के अनेक कारण हैं; जिनमें प्रमुख हैं- पानी के प्राकृतिक धामों का निरंकुश दोहन और उनका विनाश, कृषि के लिये अधिक भूमि घेरने के लिये जंगलों और मैदानों से लम्बी और गहरी जड़ों वाली घासों का जबरन समूल विनाश, शहरीकरण आदि। फलस्वरूप, अविरल नदियाँ सूख रही हैं, भूजलस्तर गहराता जा रहा है, मरुस्थल का विस्तार हो रहा है और किसान आत्महत्या कर रहे हैं।
आज देश की लगभग आधी आबादी पानी के लिये संकट की स्थिति से गुजर रही है। वैश्विक ऊष्मीकरण ने स्थिति को और बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
भूजल स्रोतों का पोषण करने के लिये प्रकृति ने पृथ्वी की ऊपरी चट्टानी परत को धीमी चलने वाली रासायनिक प्रक्रियाओं से छिद्रयुक्त किया कि छिद्र, वर्षा का पानी आसानी से अधिकाधिक मात्रा में सोख सके। धरातल को भी ऐसा ऊँचा-नीचा बनाया कि स्थान-स्थान पर वर्षाजल तालाबों में संचित हो सके। परन्तु मनुष्य के कार्य कलापों ने ऐसी दिशा पकड़ी जिससे अनेक तरह से भूजल भण्डार बन्द या जाम होते जा रहे हैं।
वनों की कटाई के कारण और सुदूर प्रदेशों में भी कंक्रीट की संरचनाओं के तेजी से हो रहे विकास के साथ ही तेजी से हो रहे जनसंख्या वृद्धि ने भी भूजल चक्र को प्रभावित किया है। वनों की कटाई से जहाँ मिट्टी के अपरदन को बढ़ावा दिया वहीं कंक्रीट के जंगल अथवा भूमि के आवासीय या अन्य इस्तेमाल ने भूजल चक्र पर नकारात्मक प्रभाव डाला।
जनसंख्या के बढ़ते दबाव के कारण भी कृषि भूमि का विकास हमारी बाध्यता रही जिसके कारण जंगल की अंधाधुंध कटाई हुई और भूजल पर दबाव बढ़ा। इस पुस्तक में इन सबकी चर्चा विस्तार से की गई है।
भारत की प्राचीन संस्कृति में पानी को वन्दनीय स्थान दिया गया है। वेदों में वर्षाजल के लिये स्तुतियाँ की गई हैं। पानी के इस स्वरूप से अवगत कराने के बाद, वैज्ञानिक चर्चा 9 अध्यायों में गुँथी हुई है।
पृथ्वी पर पानी का कैसे प्रादुर्भाव हुआ, किस प्रकार प्रकृति ने भयानक भौमिकी पृथ्वीप्लाव क्रियाओं के साथ धीमी चलने वाली मृदुल रासायनिक गतिविधियों से मिलकर विश्व का सबसे बड़ा भूजल भण्डार - गंगा-ब्रह्मपुत्र एल्युवियल मैदान करोड़ों वर्षों में बनाया, की चर्चा की गई है। भूजल, भू-सतही पानी और नदियाँ, पानी के कुछ भौतिक और रासायनिक गुण-धर्म आदि की चर्चा विस्तार से की गई है। पानी की कमी पूरी करने के लिये पानी का संचयन और संग्रहण करने के लिये प्रोत्साहित किया गया है।
इस पुस्तक की रचना डॉ. राजेंद्र कुमार और डॉ. श्रुति माथुर ने संयुक्त रूप से की है। इस पुस्तक के माध्यम से पानी की उत्पत्ति से लेकर उसके उपलब्धता तक सम्बन्धित विषयों पर प्रकाश डाला है। इस पुस्तक के लेखन का उद्देश्य पानी से जुड़े मुद्दों के प्रति लोगों में जागरुकता पैदा करना है ताकि आने वाले समय में लोग खुद इतने शिक्षित हों कि इस समस्या निपट सकें। डॉ. राजेंद्र कुमार, काउंसिल ऑफ साइंटिफिक इंडस्ट्रियल रिसर्च के रीजनल रिसर्च लेबोरेटरी के निदेशक हैं। वहीं डॉ. श्रुति माथुर जयपुर अमिटी यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।
लेखकों के अनुसार ऐसा नहीं है कि पौराणिक काल में लोग पानी के महत्त्व से वाकिफ नहीं थे। मौसमी वर्षा होने के कारण, भारत में पानी का संग्रहण सदियों पहले शुरू हो गया था। हमारे धर्म ग्रंथों के अतिरिक्त इतिहास के पुस्तकों में भी पानी संचयन के तरीकों के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है। सिंधु सभ्यता के दौरान पानी संचय के लिये बाँध बनाकर झीलों का निर्माण किया जाता था।
ऐसी झीलों के हमें पुरातात्विक साक्ष्य भी मिले हैं। इनके उत्कृष्ट उदाहरणों का जिक्र पुस्तक में जगह-जगह पर किया गया है। इनकी संरचना आज के भौमिकी विज्ञान पर खरी उतरती है। समुद्री पानी के अ-लवणीकरण की आधुनिक तकनीकियों की चर्चा विस्तार से की गई है।
अब तो पानी की कमी से जूझते देश व्यापक स्तर पर समुद्री पानी का अ-लवणीकरण करने के संयंत्र लगा रहे हैं। अफ्रीकी देश, इसराइल आदि इसके महत्त्वपूर्ण उदाहरण हैं। पाठकों को उन सभी प्राकृतिक नियमों से अवगत कराया गया है जिनसे भूमि को वर्षा के माध्यम से साफ पानी मिलता है ताकि वे उसका अनुकरण कर, समुद्री पानी से साफ पानी तैयार कर सकें।
अधिकांश विश्व पानी की कमी से त्रस्त है। इसलिये, पानी की वैश्विक उपलब्धता का परिदृश्य भी दिखाया गया है। ब्राजील में विश्व का सबसे ज्यादा पानी उपलब्ध हैं वहीं सबसे कम पानी की उपलब्धता वाला देश कुवैत है। पानी की उपलब्धता की दृष्टिकोण से विश्व में भारत आठवें पायदान पर है। लेकिन जल के अतिदोहन ने देश के कई हिस्सों को पानी की उपलब्धता के दृष्टिकोण से उन्हें निचले पायदान पर ला खड़ा किया है।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरणीय प्रोग्राम के अनुसार 2030 तक विश्व के किस आबादी में 2008 की तुलना में 40 प्रतिशत तक का इजाफा होगा। इसका असर विश्व में पानी की माँग और आपूर्ति पर पड़ेगा और पानी की घोर कमी होगी। पानी की कमी की मार विकासशील देशों पर पड़ेगी। भारत भी इसका शिकार होगा।
आज समय की पुकार है - पानी साक्षरता!