धरती धोरां री,
आ तो सुरगां नै सरमावै.
ई पर देव रमण नै आवै,
ई रो जस na र नारी गावै,
धरती धोरां री!
काळा बादळिया घहरावै,
बिरखा घूघरिया घमकावै,
बिजळी डरती ओला खावै,
धरती धोरांरी!
सूरज कण कण नै चमकावै,
चन्दो इमरत रस बरसावै.
तारा निछरावळ कर ज्यावै
धरती धोरां री!
लुळ-लुळ बाजरियो लैरावै.
मक्की झालो देर बुलावै,
कुदरत दोन्यू हाथ लुटावै,
धरती धोरां री!
पंछी मधरा-मधरा बोले,
मिसरी मीठे सुर स्यूँ घोळे
झीलूँ बायरियो पंपोळे.
धरती धोरां री!
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Very sweet and nice poem... Kya isme kuch karna hai......
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But beautiful lines plese follow me and mark me brilliant
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nice poem and nice wordung
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