धव्नि कि आत्मकथा। - इस Anuched Likhiye.
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मैं ध्वनि हूँ और शब्दों और आवाज के रूप में सब को सुनाई पड़ती हूँ । मनुष्य और सब जानवरों के इंद्रिर्यों में दो कानों से मैं सब को सुनाई पड़ती हूँ । पेड़ और पौधे भी मुझे सुन सकते हैं । मैं अदृश्य रूप में हवा में , पानी में, और सब छीजो मे लहराते हुए कानों तक पहुंचता हूँ ।
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मैं ध्वनि हूँ और शब्दों और आवाज के रूप में सब को सुनाई पड़ती हूँ । मनुष्य और सब जानवरों के इंद्रिर्यों में दो कानों से मैं सब को सुनाई पड़ती हूँ । पेड़ और पौधे भी मुझे सुन सकते हैं । मैं अदृश्य रूप में हवा में , पानी में, और सब छीजो मे लहराते हुए कानों तक पहुंचता हूँ ।
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