This is best जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं ।
हृदय नहीं वह पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं ।”
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paheli hai ye ya kya hai
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"जो भरा नहीं है भावों से, जिसमें बहती रसधार नहीं।
वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।"
महान कवि, पद्मभूषण मैथिलीशरण गुप्त जी की यह पंक्तियाँ देश के प्रत्येक नागरिक के अंदर स्वदेश के प्रति प्रेम, त्याग एवं बलिदान की भावना उत्पन्न करती है | वह राष्ट्र कभी उन्नति नहीं कर सकता जिस राष्ट्र के नगरीकों में त्याग एवं बलिदान की भावना नहीं होती |
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