Math, asked by amitkumar502, 1 year ago

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वीर भोग्या वसुंधरा पर अनुच्छेद लेखन

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Answered by Anonymous
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यह शब्द सबसे अधिक राजपूतों के द्वारा इस्तेमाल किया जाता है। "वीर भोग्य वसुंधरा" का अर्थ है जो वीर है वह इस धरती का भोग कर सकता है, जो इसकी रक्षा के लिए मर मिटने को तैयार है वह इस का भोग कर सकता है, जिसमें दुश्मनों से लड़ने का साहस है वह इस धरती का भोग कर सकता है, यह आवश्यक नहीं है कि राजपूत ही वीर हैं, वीर की परिभाषा थोड़ी अलग है, जो अपने देश के लिए मर मिटने को तैयार है वह वीर है, चाहे वह किसी भी जाति या धर्म का क्यों ना हो उसे इस धरती का भोग करने का पूर्ण अधिकार है।

Answered by SahilChandravanshi
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वीर भोग्या वसुंधरा हमें अपने पूर्वजों ऋषियों, मुनियों से जो पारंपरिक ज्ञान प्राप्त हुआ है, उसके अनुसार कहा गया है ' ऋषियों नें सत्य ही कहा, वीर भोग्या वसुंधरा '--परशुराम की प्रतीक्षा,रामधारी सिंह दिनकर. केवल वीर और शक्तिशाली लोग ही इस धरती / वसुंधरा का उपभोग कर सकते हैं. अगर शाब्दिक अर्थ में न जाकर भावात्मक अर्थ में जाएँ तो अंग्रेजी में कहा जाएगा ' Only brave will inherit the earth ' . गोस्वामी तुलसी दास जी नें भी कहा है ' समरथ को नहीं दोष गोसाईं . ' और ' टेढ़ जानि शंका सब काहू, वक्र चंद्रमा ग्रसहिं न राहू ' . तात्पर्य स्पष्ट है कि जो सामर्थ्यवान और शक्तिशाली होते हैं उनको दोष नहीं दिया जा सकता है. महान वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन नें विकासवाद के सिद्धांत का प्रतिपादन किया है. इस सिद्धांत के अनुसार मानव जाति एक विकास की प्रक्रिया से होकर अस्तित्व में आई है. यह विकास क्रमबद्ध तरीके से पहले छोटे जीवों की उत्पत्ति से लेकर वर्तमान में मानव के अस्तित्व में आने तक हुआ है. विकास के दौरान अपने अस्तित्व को बचाने के लिए निरंतर संघर्ष ( Struggle for existence ) होता रहा है. जो प्रकृति के नियमों के अनुसार अपने को ढाल सके ( Adaptation )और जो शक्तिशाली थे वही अस्तित्व ( Survival of fittest and strogest ) में रहे. जो प्रकृति के नियमों के प्रतिकूल और कमज़ोर थे उनका अस्तित्व धीरे धीरे समाप्त होता गया. इस विकास की प्रक्रिया से गुज़रकर हम मानव की वर्तमान अवस्था में पहुँचे है. विकास की प्रक्रिया प्राकृति के नियमों के अनुसार निरंतर चलती रहती है और विकास होता रहता है. निष्कर्ष यह निकलता है की जो मन, धन और शारीरिक दृष्टि ,सभी प्रकार से शक्तिशाली होते हैं, उन्हीं का अस्तित्व सुरक्षित रहता है. यह एक ऐसा बिंदु है जहाँ हमारे शास्त्रों से प्राप्त परंपरागत ज्ञान ' वीर भोग्या वसुंधरा ' और ' समरथ को नहीं दोष गोसाईं ' विज्ञान के सिद्धांत से मेल खाते है. सभी का निचोड़ यह है कि हर तरीके धन,मानसिक और शारीरिक दृष्टि से शक्तिशाली ही जीवन संघर्ष में विजयी होते हैं और अपना अस्तित्व बनाए रख सकते है. कमज़ोर धीरे धीरे अस्तित्व विहीन होते जाएँगे.

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