Hindi, asked by Kepler, 1 year ago

tibet ka rahan sahan in hindi

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Answered by mchatterjee
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वे हमेशा तिब्बती चमड़े के वस्त्र पहनते हैं और उत्तरी तिब्बत में जीवन जीते हैं। उनकी त्वचा अमेरिकी भारतीयों के पर्यटकों को याद दिलाता है। चराई वाले क्षेत्र में महिलाएं आमतौर पर अपने बालों को एक बड़ी चोटी में बंडल कर रंगीन पत्थरों से सजाती है। उनमें से कुछ तांबे के सिक्कों और गोले पर बने कपड़े के एक बड़े पैच के साथ अपने बालों को भी ढकते हैं।

धार्मिक अभ्यास और बौद्ध सिद्धांत अधिकांश तिब्बतियों के लिए दैनिक जीवन का हिस्सा हैं। भिक्षुओं और नन अपने समुदायों में मार्गदर्शन और शिक्षा प्रदान करते हुए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे अक्सर तिब्बत के पर्यावरण, भाषा और संस्कृति की सुरक्षा और प्रचार में बहुत सक्रिय होते हैं।

लगभग सभी तिब्बती दलाई लामा को गहराई से समर्पित हैं और चीनी सरकार द्वारा उनका निर्वासन और उपचार दुख और क्रोध के स्रोत हैं।
Answered by snehaparadkar
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Explanation:

तिब्बत का ऐतिहासिक मानचित्र 300px मध्य एशिया की उच्च पर्वत श्रेणियों, कुनलुन एवं हिमालय के मध्य स्थित 16000 फुट की ऊँचाई पर स्थित तिब्बत का ऐतिहासिक वृतांत लगभग 7वीं शताब्दी से मिलता है। 8वीं शताब्दी से ही यहाँ बौद्ध धर्म का प्रचार प्रांरभ हुआ। 1013 ई0 में नेपाल से धर्मपाल तथा अन्य बौद्ध विद्वान् तिब्बत गए। 1042 ई0 में दीपंकर श्रीज्ञान अतिशा तिब्बत पहुँचे और बौद्ध धर्म का प्रचार किया। शाक्यवंशियों का शासनकाल 1207 ई0 में प्रांरभ हुआ। मंगोलों का अंत 1720 ई0 में चीन के माँछु प्रशासन द्वारा हुआ। तत्कालीन साम्राज्यवादी अंग्रेंजों ने, जो दक्षिण पूर्व एशिया में अपना प्रभुत्व स्थापित करने में सफलता प्राप्त करते जा रहे थे, यहाँ भी अपनी सत्ता स्थापित करनी चाही, पर 1788-1792 ई0 के गुरखों के युद्ध के कारण उनके पैर यहाँ नहीं जम सके। परिणामस्वरूप 19वीं शताब्दी तक तिब्बत ने अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थिर रखी यद्यपि इसी बीच लद्दाख़ पर कश्मीर के शासक ने तथा सिक्किम पर अंग्रेंजों ने आधिपत्य जमा लिया। अंग्रेंजों ने अपनी व्यापारिक चौकियों की स्थापना के लिये कई असफल प्रयत्न किया। इतिहास के अनुसार तिब्बत ने दक्षिण में नेपाल से भी कई बार युद्ध करना पड़ा और नेपाल ने इसको हराया। नेपाल और तिब्बत की सन्धि के मुताबिक तिब्बत ने हर साल नेपाल को ५००० नेपाली रुपये हरज़ाना भरना पड़ा। इससे आजित होकर नेपाल से युद्ध करने के लिये चीन से सहायता माँगी। चीन के सहायता से उसने नेपाल से छुटकारा तो पाया लेकिन इसके बाद 1906-7 ई0 में तिब्बत पर चीन ने अपना अधिकार बनाया और याटुंग ग्याड्से एवं गरटोक में अपनी चौकियाँ स्थापित की। 1912 ई0 में चीन से मांछु शासन अंत होने के साथ तिब्बत ने अपने को पुन: स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया। सन् 1913-14 में चीन, भारत एवं तिब्बत के प्रतिनिधियों की बैठक शिमला में हुई जिसमें इस विशाल पठारी राज्य को भी दो भागों में विभाजित कर दिया गया.

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