Toditi todti patthar Kavita mein nirala ki stri drishti par prakash ki kijiye
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व्याख्या – कवि कहता है कि उसने इलाहाबाद के पथ पर एक श्रमिक महिला को पत्थर तोड़ते हुए देखा था | वह नारी तपती हुई भयंकर धूप में पत्थर तोड़ रही थी | जिस स्थान पर वह पत्थर तोड़ रही थी उस स्थान पर कोई छायादार पेड़ नहीं था जिसकी छाया का वह आश्रम ले सकती | उसका शरीर साँवला और स्वस्थ था | वह भरपूर यौवन से युक्त थी | उसकी आंखें नारी सुलभ लज्जा से झुकी हुई थी और वह पूर्ण निष्ठा से अपने प्रिय कार्य अर्थात पत्थर तोड़ने में निमग्न थी | उसके हाथ में एक भारी हथौड़ा था जिससे वह पत्थरों पर बार-बार चोट कर रही थी | जहां वह कार्य कर रही थी उसके सामने पेड़ों की पंक्ति, विशाल भवन एवं उनकी चारदीवारी थी | (1)
ग्रीष्म ऋतु का समय था | दिन चढ़ने के साथ-साथ धूप भी तेज होती जा रही थी | दिन अधिक गर्मी के कारण तमतमा रहा था |शरीर को झुलसा देने वाले गर्म हवाएँ चल रही थी | पृथ्वी गर्मी के कारण ऐसे जल रही थी मानो रुई जल रही हो | लगभग दोपहर का समय हो गया था | भयंकर गर्मी पड़ रही थी ऐसे में वह श्रमिक महिला पत्थर तोड़ने का कार्य कर रही थी | (2)
कवि कहता है कि इलाहाबाद के पथ पर पत्थर तोड़ने का कार्य कर रही उस युवती ने जब मुझे अपनी ओर ताकते हुए देखा तो उसने बड़े दु:ख और हताशा के साथ एक बार सामने खड़े भवन की ओर देखा | उसने उस भवन को ऐसे देखा जैसे कुछ ना देख रही हो | उसने मुझे देखा तो मुझे उसकी दृष्टि में वह भाव नजर आया जैसे एक भय-ग्रस्त बच्चा मार खाने पर भी भय से रोता नहीं है | अपने प्रति सहानुभूति की भावना को देखकर उसकी भावनाओं की वीणा के तार झंकृत हो उठे और ऐसी ध्वनि सुनाई दी जो मैंने आज तक नहीं सुनी थी | कहने का भाव यह है कि कवि ने पीड़ा का ऐसा स्वर कभी नहीं सुना था | तभी वह युवती काँप उठी और उसके माथे से पसीने की बूंदे ढुलक कर नीचे गिर गयी | तत्पश्चात वह युवती फिर से अपने कार्य में तल्लीन हो गई | उसे पत्थर तोड़ते हुए देखकर ऐसा आभास हो रहा था मानो वह कह रही हो कि मैं पत्थर तोड़ने वाली हूँ ; यही मेरा कार्य है | कहने का अभिप्राय यह है कि वह पत्थर तोड़ने वाली स्त्री पत्थर तोड़ना ही अपनी नियति मान चुकी है |