Art, asked by Abhishekpandey9115, 1 year ago

Tolerance paragraph in hindi

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Answered by harshraj45
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धर्म आदिकाल से ही मानव के लिए प्रमुख प्रेरक तत्व रहा है । प्राचीनकाल में धर्म का कोई स्पष्ट स्वरूप नहीं था, अत: प्राकृतिक शक्तियों से भयभीत होना तथा इन शक्तियों की पूजा करना धर्म का एक सर्वमान्य स्वरूप बन गया ।

विश्व की विभिन्न प्राचीन सभ्यताओं के धर्मों एवं मान्यताओं में धर्म के इसी विलक्षण स्वरूप की प्रबलता रही । भारत में ऋग्वैदिक काल से धर्म के एक नए धरातल की रचना हुई, यहीं से यज्ञ, मंत्र और ऋचाओं का प्रचलन आरंभ हुआ । मूर्तिपूजा और कर्मकांड के साथ-साथ धार्मिक अंध-विश्वासों ने भी अपना स्थान बना लिया ।

इसके बाद भारत सहित दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों में कई धर्म प्रवर्तन हुए, साथ-साथ विभिन्न धर्मों और सभ्यताओं के मध्य अंत: क्रिया भी आरंभ हुई । इस तरह भारत तथा अन्य देश बहुधर्मी देश बन

गए । चूँकि हिंदू, जैन, बौद्‌ध, सिख आदि धार्मिक संप्रदायों का गठन भारत में ही हुआ अत: वैसे भी यहाँ धार्मिक विविधता का होना स्वाभाविक था ।

इसी मध्य इस्लाम ईसाई आदि धर्मो के लोग भी यहाँ आते रहे तथा यहाँ की सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों के कारण उन्हें अपने-अपने मत के प्रचार का पूरा अवसर मिल गया । आज का भारत सभी प्रकार के मतों, सिद्‌धांतों और मान्यताओं को समान महत्व देनेवाला देश कहा जा सकता है । वैसे भी आज की दुनिया पहले से कहीं अधिक सहिष्णु है ।

दूसरे शब्दों में, विज्ञान ने दुनिया के लोगों को यातायात और संचार की आधुनिक सुविधाएँ प्रदान कर उन्हें पृथ्वी पर कहीं भी जाकर रहने का अधिक अवसर प्रदान किया है । लोगों को उनके धर्म के आधार पर छोटा या बड़ा मानने की अवधारणा पर पिछली सदी में काफी प्रहार हुआ अत: चाहे सभ्यता के ही नाते अथवा चाहे कानून के भय से धार्मिक आधार पर उत्पीड़न की परिपाटी समाप्त होती जा रही है ।

पर कई तरह के विवाद अब भी बने हुए हैं क्योंकि प्रत्येक मनुष्य के भीतर छिपा हुआ पशु जब कभी भी जागता है, तब सामाजिक ताने-बाने छिन्न-भिन्न हो जाया करते हैं । धर्म की रक्षा के नाम पर जब मानव समुदाय तांडव करने लगता है, तो सामान्य मर्यादाएँ भी आठ-आठ आँसू रोने के लिए विवश हो जाती हैं ।

हमने अपनी सहजता ही एकदम बिसारी है

इसके बिना जीवन कुछ इतना कठिन है कि

फर्क जल्दी समझ नहीं आता –

यह दुर्दिन है या सुदिन है ।”

कारण चाहे कुछ भी रहे हों, कितने ही सुंदर तर्क दिए गए हों ‘ तथाकथित धर्मरक्षक जब सहिष्णुता का त्याग कर देते हैं तब समाज या राष्ट्र के विघटन का खतरा उत्पन्न हो जाता है । भारतीय राज्य जम्मू व कश्मीर में चलाए जा रहे तथाकथित ‘जेहाद’ का मूल स्त्रोत इस्लामी कट्‌टरवाद ही रहा है, आज पूरी दुनिया इस तथ्य को स्वीकार कर रही है ।

इसके पीछे नेपथ्य में रहा पाकिस्तान भी इस सच्चाई को मानने के लिए विवश है कि उसकी धरती पर आतंक का बेरोकटोक साम्राज्य अपनी जड़ें जमा चुका है जो अब अपने ही घर को स्वाहा करने के लिए तत्पर है ।

लेकिन इतना सब कुछ होते हुए भी वह भारत में अपनी आतंकवादी गतिविधियाँ रोकने में हिचकिचाहट महसूस कर रही है । भारत के अन्य हिस्सों में भी आए दिन कुछ न कुछ धार्मिक विवाद भड़क उठते हैं जिससे सांप्रदायिक सौहार्द को क्षति पहुँचती है । चूँकि विघटनकारी तत्व हर समुदाय में हैं अत: ये लोग तिल का ताड़ बनाकर अपने धंधे को चालू रखने में सफल हो जाते हैं ।

भारत मे दंगों का एक लंबा इतिहास रहा है । हर दंगे अपने पीछे घृणा और आपसी वैमनस्य के बीज छींट कर फिर से कई नए दंगों की पृष्ठभूमि तैयार करते है । गुजरात के दंगे अब तक के भीषणतम दंगे कहे जा सकते हैं ।



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