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1. भारतीय ग्रामीण खेलों पर लेख(
कोई-2 खेल)
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भारत हमेशा से संस्कृति और परंपरा से समृद्ध रहा है! और खेल, हमेशा से ही भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहें हैं। चाहे भगवान शिव और उनकी पत्नी पार्वती के बीच पचीसी का खेल हो, पांडवों द्वारा पासे के खेल में द्रौपदी को हार जाना या दोपहर के बाद शतरंज के खेल का आनंद लेने वाले मुगल; खेल और खेलने वाले हमेशा से भारत के इतिहास और पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आये हैं।
धीरे-धीरे समय बदल गया और इसके साथ ही बदलाव आये हमारे खेलों में भी। प्ले स्टेशन, वीडियो गेम और गैजेट के समय में, हम सभी भारत के पारंपरिक खेलों को शायद भूल ही गए हैं। याद है कैसे हम स्कूल खत्म होने तक का इंतजार नहीं कर पाते थे ताकि हम अपने दोस्तों के साथ जाकर किठ-किठ खेल सकें?
गिल्ली-डंडा भारतीय गांवों की गलियों में खेले जाने वाला यह खेल बच्चों का सबसे पसंदीदा खेल है। इसमें दो छड़ें होती हैं, एक थोड़ी बड़ी, जिसे डंडे के रूप में प्रयोग किया जाता है और छोटी छड़ को गिल्ली के लिए। गिल्ली के दोनों तरफ के छोर को चाक़ू से नुकीला किया जाता है।
डंडे से गिल्ली के एक छोर पर चोट की जाती है, जिससे कि वह हवा में उछले और हवा में फिर से एक बार गिल्ली पर चोट करते हैं जिससे वह दूर जाकर गिरती है। इसके बाद खिलाडी पहले बिंदु को छूने के लिए दौड़ता है ताकि दूसरे खिलाडी के गिल्ली लाने से पहले वह पहुंच सके।
किठ-किठ घर के अंदर, बाहर और गली में खेला जा सकता है। आपको बस एक चौक से जमीन पर रेक्टैंगल डिब्बे बनाने हैं और उनमें नंबर लिखने होते हैं। हर एक खिलाडी बाहर से एक पत्थर एक डिब्बे में फेंकता है और फिर किसी भी डिब्बे की लाइन को छुए बिना एक पैर पर (लंगड़ी टांग) उस पत्थर को बाहर लाता है।
इस खेल को कई और नामों से भी जाना जाता है, जैसे की कुंटे, खाने आदि।
बच्चों के बीच कंचा खेलना सबसे प्रसिद्द खेल होता था। इस खेल को मार्बल से खलते हैं, जिसे ‘कंचा’ कहते हैं। इस खेल में सभी कंचे इधर-उधर कुछ दुरी पर बिखेर दिए जाते हैं। खिलाडी एक निश्चित दुरी से एक कंचे से दूसरे कंचों को हिट करता है। जो खिलाडी सभी कंचों को हिट कर लेता है वह विजेता होता है। आखिर में सभी कंचे विजेता को दे दिए जाते हैं।