Topic:- भारत में किसान का महत्व
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भारतीय किसान धरती माता का सच्चा सपूत है । वह ऋषि-मुनियों, सन्त-महात्माओं के जीवन के उच्चादर्शो के काफी निकट है; क्योंकि वह भीषण गरमी में गम्भीर आघातों को सहकर, कड़ाके की ठण्ड में और बरसते हुए पानी में रहकर अपने कर्म में बड़ी ही ईमानदारी एवं तत्परता से लगा रहता है ।
धरती के समूचे प्राणियों के जीवन के लिए अन्न उपजाने वाला भारतीय किसान इतना परोपकारी एवं मेहनती है कि वह अपने स्वार्थ व सुख की तनिक भी चिन्ता नहीं करता । उसका जीवन अत्यन्त सीधा-सादा है । शरीर पर धोती, अंगरखा, गमछा और नंगे पैर रहकर भी दूसरों के लिए अन्न उपजाना ही उसका ध्येय है ।प्रात: काल सूरज के उगने के साथ सायंकाल सूरज के डूबने तक खेतों में काम करना ही उसके जीवन की साधना है । घर पर अपने पशुओं की सेवा करने में भी वह जरा सी भी सुस्ती नहीं करता । जहां तक भारतीय किसान की स्थिति है, वह अत्यन्त दयनीय है । 50 प्रतिशत से अधिक भारतीय किसान जमींदारों, पूंजीपतियों, साहूकारों के आर्थिक शोषण का शिकार है ।
ऋणग्रस्तता ने उन्हें गरीबी के मुंह में धकेल दिया है । जमींदारों के कर्ज के बोझ तले दबा हुआ उसका जीवन कभी अकाल, तो कभी महामारी तो कभी बाढ़ या सूखे की चपेट में आ जाता है । ऐसी स्थिति में उसे असमय ही मृत्यु वरण करने को विवश होना पड़ता है । कई बार तो उन्हें सपरिवार सामूहिक रूप में भीषण गरीबी से जूझते हुए आत्महत्या भी करनी पड़ जाती है ।
कर्ज के बोझ तले दबा उसका जीवन किसी बंधुआ मजूदर के जीवन से कुछ कम नहीं होता । सच कहा जाये, तो वह कर्ज में ही पैदा होता है और कर्ज में ही मर जाता है । उसके बैलों की प्यारी जोड़ी भी उसके हल के साथ बिक जाती है ।
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