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१. अभयं मित्रादभयममित्रादभयं ज्ञानदभयं परोदाता।
अभयं नलमभयं दिवा नः सर्वा आशा मम मित्रं भवन्तु ।।
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! जो बुद्धि प्रवृत्ति और निवृत्ति, कार्य और अकार्य, भय और अभय तथा बन्ध और मोक्ष को तत्त्वत जानती है, वह बुद्धि सात्विकी है।।
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gfht bright gfyeuiriejdhrrk
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