Transport ke bare me ek kavitha
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छुक छुक करती चलती रेल,
नहीं किसी से डरती रेल.
नदियाँ हों या उँचा पर्वत,
पार सभी को करती रेल.
उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम
चारों ओर से घुमाती रेल.
दुनिया भर की सैर कराती,
फिर वापस आ जाती रेल.
चलते रहे निरंतर फिर भी,
नहीं कभी भी थकती रेल.
सारे जग का बोझ उठाती,
काम सभी के करती रेल.
छुक-छुक छुक-छुक करती रेल,
एक बात हमको सिखलाती.
आगे बढ़ते रहने से ही,
बच्चों! प्रगती देश में आती.
नहीं किसी से डरती रेल.
नदियाँ हों या उँचा पर्वत,
पार सभी को करती रेल.
उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम
चारों ओर से घुमाती रेल.
दुनिया भर की सैर कराती,
फिर वापस आ जाती रेल.
चलते रहे निरंतर फिर भी,
नहीं कभी भी थकती रेल.
सारे जग का बोझ उठाती,
काम सभी के करती रेल.
छुक-छुक छुक-छुक करती रेल,
एक बात हमको सिखलाती.
आगे बढ़ते रहने से ही,
बच्चों! प्रगती देश में आती.
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