Hindi, asked by roshan73, 1 year ago

tulasi das peoms in hindi

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Answered by vardhan1028
1
राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार |

तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर ||

अर्थ: तुलसीदासजी कहते हैं कि हे मनुष्य ,यदि तुम भीतर और बाहर दोनों ओर उजाला चाहते हो तो मुखरूपी द्वार की जीभरुपी देहलीज़ पर राम-नामरूपी मणिदीप को रखो |

—2—

नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु |

जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास ||

अर्थ: राम का नाम कल्पतरु (मनचाहा पदार्थ देनेवाला )और कल्याण का निवास (मुक्ति का घर ) है,जिसको स्मरण करने से भाँग सा (निकृष्ट) तुलसीदास भी तुलसी के समान पवित्र हो गया |

—3—

तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर |

सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि ||

अर्थ: गोस्वामीजी कहते हैं कि सुंदर वेष देखकर न केवल मूर्ख अपितु चतुर मनुष्य भी धोखा खा जाते हैं |सुंदर मोर को ही देख लो उसका वचन तो अमृत के समान है लेकिन आहार साँप का है |

—4—

सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु |


बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु ||

अर्थ: शूरवीर तो युद्ध में शूरवीरता का कार्य करते हैं ,कहकर अपने को नहीं जनाते |शत्रु को युद्ध में उपस्थित पा कर कायर ही अपने प्रताप की डींग मारा करते हैं |

—5—

सहज सुहृद गुर स्वामि सिख जो न करइ सिर मानि |

सो पछिताइ अघाइ उर अवसि होइ हित हानि ||

अर्थ: स्वाभाविक ही हित चाहने वाले गुरु और स्वामी की सीख को जो सिर चढ़ाकर नहीं मानता ,वह हृदय में खूब पछताता है और उसके हित की हानि अवश्य होती है |

—6—

मुखिया मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक |

पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक ||

अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि मुखिया मुख के समान होना चाहिए जो खाने-पीने को तो अकेला है, लेकिन विवेकपूर्वक सब अंगों का पालन-पोषण करता है |

—7—

सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस |

राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ||

अर्थ: गोस्वामीजी कहते हैं कि मंत्री, वैद्य और गुरु —ये तीन यदि भय या लाभ की आशा से (हित की बात न कहकर ) प्रिय बोलते हैं तो (क्रमशः ) राज्य,शरीर एवं धर्म – इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है |

—8—


तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ ओर |

बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर ||

अर्थ: तुलसीदासजी कहते हैं कि मीठे वचन सब ओर सुख फैलाते हैं |किसी को भी वश में करने का ये एक मन्त्र होते हैं इसलिए मानव को चाहिए कि कठोर वचन छोडकर मीठा बोलने का प्रयास करे |

—9—

सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि |

ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि ||

अर्थ: जो मनुष्य अपने अहित का अनुमान करके शरण में आये हुए का त्याग कर देते हैं वे क्षुद्र और पापमय होते हैं |दरअसल ,उनका तो दर्शन भी उचित नहीं होता |

—10—

दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान |

तुलसी दया न छांड़िए ,जब लग घट में प्राण ||

अर्थ: गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं कि मनुष्य को दया कभी नहीं छोड़नी चाहिए क्योंकि दया ही धर्म का मूल है और इसके विपरीत अहंकार समस्त पापों की जड़ होता है|


—11—

आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह|

तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह||

अर्थ: जिस जगह आपके जाने से लोग प्रसन्न नहीं होते हों, जहाँ लोगों की आँखों में आपके लिए प्रेम या स्नेह ना हो, वहाँ हमें कभी नहीं जाना चाहिए, चाहे वहाँ धन की बारिश ही क्यों न हो रही हो|

—12—

तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक|

साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसे एक||

अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं, किसी विपत्ति यानि किसी बड़ी परेशानी के समय आपको ये सात गुण बचायेंगे: आपका ज्ञान या शिक्षा, आपकी विनम्रता, आपकी बुद्धि, आपके भीतर का साहस, आपके अच्छे कर्म, सच बोलने की आदत और ईश्वर में विश्वास|

—13—


तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान|

भीलां लूटी गोपियाँ, वही अर्जुन वही बाण||

अर्थ: गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं, समय बड़ा बलवान होता है, वो समय ही है जो व्यक्ति को छोटा या बड़ा बनाता है| जैसे एक बार जब महान धनुर्धर अर्जुन का समय ख़राब हुआ तो वह भीलों के हमले से गोपियों की रक्षा नहीं कर पाए

—14—

तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए|

अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए||

अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं, ईश्वर पर भरोसा करिए और बिना किसी भय के चैन की नींद सोइए| कोई अनहोनी नहीं होने वाली और यदि कुछ अनिष्ट होना ही है तो वो हो के रहेगा इसलिए व्यर्थ की चिंता छोड़ अपना काम करिए|

—15—

तुलसी इस संसार में, भांति भांति के लोग|

सबसे हस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग||

अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं, इस दुनिय में तरह-तरह के लोग रहते हैं, यानी हर तरह के स्वभाव और व्यवहार वाले लोग रहते हैं, आप हर किसी से अच्छे से मिलिए और बात करिए| जिस प्रकार नाव नदी से मित्रता कर आसानी से उसे पार कर लेती है वैसे ही अपने अच्छे व्यवहार से आप भी इस भव सागर को पार कर लेंगे|

—16—

लसी पावस के समय, धरी कोकिलन मौन|

अब तो दादुर बोलिहं, हमें पूछिह कौन||

अर्थ: बारिश के मौसम में मेंढकों के टर्राने की आवाज इतनी अधिक हो जाती है कि कोयल की मीठी बोली उस कोलाहल में दब जाती है| इसलिए कोयल मौन धारण कर लेती है| यानि जब मेंढक रुपी धूर्त व कपटपूर्ण लोगों का बोलबाला हो जाता है तब समझदार व्यक्ति चुप ही रहता है और व्यर्थ ही अपनी उर्जा नष्ट नहीं करता|

—17—

काम क्रोध मद लोभ की, जौ लौं मन में खान|

तौ लौं पण्डित मूरखौं, तुलसी एक समान||

अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं, जब तक व्यक्ति के मन में काम, गुस्सा, अहंकार, और लालच भरे हुए होते हैं तब तक एक ज्ञानी और मूर्ख व्यक्ति में कोई भेद नहीं रहता, दोनों एक जैसे ही हो जाते हैं|

vardhan1028: pls mark as brainlist
roshan73: ok
Answered by rockhenzi
2
https://www.achhikhabar.com/2013/11/11/tulsidas-ji-ke-dohe-with-meaning-in-hindi/
तुलसीदास जी के प्रसिद्द दोहे हिंदी अर्थ सहित ...


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