tulsi ke dohhe 8 th class
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1) दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान, तुलसी दया न छोडिये जब तक घट में प्राण.
2) सरनागत कहूँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि, ते नर पावॅर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि.
3) “तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ और, बसीकरण इक मंत्र हैं परिहरु बचन कठोर.”
4) रम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार तुलसी भीतर बाहेर हूँ जौं चाहसि उजिआर.”
5) मुखिया मुखु सो चाहिये खान पान कहूँ एक, पालड़ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक.
6) बिना तेज के पुरुष की अवशि अवज्ञा होय, आगि बुझे ज्यों राख की आप छुवै सब कोय.”
7) “ तुलसी साथी विपत्ति के विद्या विनय विवेक, साहस सुकृति सुसत्यव्रत राम भरोसे एक.”
8) तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर, सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि.”
9) सुर समर करनी करहीं कहि न जनावहिं आपु, विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु.”
10) नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु. जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास.”
2) सरनागत कहूँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि, ते नर पावॅर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि.
3) “तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ और, बसीकरण इक मंत्र हैं परिहरु बचन कठोर.”
4) रम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार तुलसी भीतर बाहेर हूँ जौं चाहसि उजिआर.”
5) मुखिया मुखु सो चाहिये खान पान कहूँ एक, पालड़ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक.
6) बिना तेज के पुरुष की अवशि अवज्ञा होय, आगि बुझे ज्यों राख की आप छुवै सब कोय.”
7) “ तुलसी साथी विपत्ति के विद्या विनय विवेक, साहस सुकृति सुसत्यव्रत राम भरोसे एक.”
8) तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर, सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि.”
9) सुर समर करनी करहीं कहि न जनावहिं आपु, विद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु.”
10) नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु. जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास.”
poojapatel1:
ty dear
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