tulsidas ke 5 niti dohe
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१)सुरनर मुनि कोऊ नहीं, जेहि न मोह माया प्रबल।
अस विचारी मन माहीं, भजिय महा मायापतिहीं।।
२)देव दनुज मुनि नाग मनुज सब माया विवश बिचारे।
तिनके हाथ दास तुलसी प्रभु कहा अपनपो हारे।।
३)तुलसी अपने राम को, भजन करौ निरसंक।
आदि अन्त निरबाहिवो जैसे नौ को अंक।।
४)तुलसी इस संसार में सबसे मिलियो धाई।
न जाने केहि रूप में नारायण मिल जाई।
५)राम नाम मनिदीप धरू जीह देहरीं द्वार।
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजियार।।
अस विचारी मन माहीं, भजिय महा मायापतिहीं।।
२)देव दनुज मुनि नाग मनुज सब माया विवश बिचारे।
तिनके हाथ दास तुलसी प्रभु कहा अपनपो हारे।।
३)तुलसी अपने राम को, भजन करौ निरसंक।
आदि अन्त निरबाहिवो जैसे नौ को अंक।।
४)तुलसी इस संसार में सबसे मिलियो धाई।
न जाने केहि रूप में नारायण मिल जाई।
५)राम नाम मनिदीप धरू जीह देहरीं द्वार।
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजियार।।
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