tulsidas ki bhavgat v kavyagat vishestayen likhen
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बहुत से मनुष्य सोच सोच कर कि हमें कभी सफलता नहीं मिलेगी, तब हमारे विपरीत अपनी सफलता को अपने हाथों पीछे धकेल देते हैं| उनका मानसिक भाव सफलता और विजय के अनुकूल बनता ही नहीं तो सफलता और विजय कहां? यदि हमारा मन संका और निराशा से भरा है तो हमारे कामों का परिचय भी निराशाजनक ही होगा, क्योंकि सफलता की, विजय की, उन्नति को कुंजी तो अभी चल श्रद्धा ही है
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