Tulsidas par saraansh
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Explanation:
Tulsidas, also known as Goswami Tulsidas,[4] was a Hindu Vaishnava saint and poet, renowned for his devotion to the deity Rama. Tulsidas wrote several popular works in Sanskrit and Awadhi; he is best known as the author of the epic Ramcharitmanas, a retelling of the Sanskrit Ramayana based on Rama's life in the vernacular Awadhi dialect of Hindi.
Answer:
तुलसीदास हिन्दी साहित्य की रामभकित परंपरा के सशक्त आधार स्तंभ हैं। तुलसी से पहले और बाद में भी हिन्दी साहित्य में रामभकित काव्य की परंपरा मिलती है, किंतु रामभकित को जन-जन में प्रसारित करने और राम के नाम को भकित-क्षेत्रा में सर्वोपरि स्थान दिलाने में तुलसीदास का महत्तम योगदान है। सामाजिक दृषिट से उनका महत्त्व इस दृषिट से और भी बढ़ जाता है कि उन्होंने न केवल रामभकित को अपनी कविता का उíेश्य बनाया अपितु समसामयिक राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक परिसिथतियों के अनुरूप राम के आदर्श चरित्रा का जो रूप प्रस्तुत किया, उससे उन्हें व्यापक लोक मान्यता प्राप्त हुर्इ।
तुलसी के युग में धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक मूल्य अपना महत्त्व खो चुके थे। समाज उच्चवर्ग और निम्नवर्ग की दो गहरी खाइयों में बंटा हुआ था। उच्च सामंतवर्ग जहाँ एक ओर वैभव विलासपूर्ण जीवन में लिप्त था, तो गरीब वर्ग जीवन की आवश्यक आवश्यकताओं से भी वंचित था। तुलसी के काव्य में उपलब्ध 'खेती न किसान को, बनिक को बनिज न, भिखारी को न भीख भलि, चाकर को चाकरी जैसी पंकितयाँ उनके युग के समाज की दयनीय दशा की ओर संकेत करती हैं। धन के मद में डूबे शासक-वर्ग को शोषित एवं संत्रास्त जन-समाज की कोर्इ चिंता नहीं थी। अत्याचारी शासकों के शासन में जनता स्वयं को असुरक्षित अनुभव कर रही थी।
सामाजिक क्षेत्रा में वर्ण-व्यवस्था का बोलबाला था। ऊँच-नीच का भेदभाव समाज को खोखला बना रहा था। पारिवारिक जीवन विÜाृंखलित हो रहा था और स्त्राी पूर्णत: पुरुष पर आश्रित थी, जिसकी स्वयं की कोर्इ आवाज़ और अèािकार नहीं थे। विजेता मुगल शासकों के आगमन के कारण धार्मिक क्षेत्रा में भी दोनों धमो± और संस्Ñतियों में सीधी टक्कर हुर्इ। काफिरों को मारना, मंदिर और मूर्तियों का विध्वंस करके दूसरे धर्म की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाना और अपने धर्म का अंधाधुंध प्रचार इस विदेशी संस्Ñति का मूल उíेश्य था।
अपने युगीन समाज की चहुँमुखी दुर्दशा केा देखकर तुलसी का विक्षुब्ध मन इन सभी विÑतियों को दूर करने के लिए व्याकुल हो उठा। उन्होंने अनुभव किया कि राम के आदर्श स्वरूप को जन-जन में पहुँचाए बिना समाज का उत्थान नहीं हो सकता। सगुण भकित, राम के रूप में सभी सामाजिक संबंधों का आदर्श और आदर्श शासक के उनके सभी स्वप्न 'रामचरितमानस में प्रतिफलित हुए।
'मुखिया मुख सो चाहिए, खान पान कहुँ एक।
पालहि पोषइ सकल अंग, तुलसी सहित बिबेक।
जैसे तुलसी के आदर्श राज्यत्व-संबंधी विचार तत्कालीन युग के संदर्भ में ही नहीं अपितु प्रत्येक युग के संदर्भ में ग्राá हैं।