Tulsidas poem and it's summary in Hindi
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माधवजू मोसम मंद न कोऊ।
जद्यपि मीन पतंग हीनमति, मोहि नहिं पूजैं ओऊ॥१॥
रुचिर रूप-आहार-बस्य उन्ह, पावक लोह न जान्यो।
देखत बिपति बिषय न तजत हौं ताते अधिक अयान्यो॥२॥
महामोह सरिता अपार महँ, संतत फिरत बह्यो।
श्रीहरि चरनकमल-नौका तजि फिरि फिरि फेन गह्यो॥३॥
अस्थि पुरातन छुधित स्वान अति ज्यों भरि मुख पकरै।
निज तालूगत रुधिर पान करि, मन संतोष धरै॥४॥
परम कठिन भव ब्याल ग्रसित हौं त्रसित भयो अति भारी।
चाहत अभय भेक सरनागत, खग-पति नाथ बिसारी॥५॥
जलचर-बृंद जाल-अंतरगत होत सिमिट एक पासा।
एकहि एक खात लालच-बस, नहिं देखत निज नासा॥६॥
मेरे अघ सारद अनेक जुग गनत पार नहिं पावै।
तुलसीदास पतित-पावन प्रभु, यह भरोस जिय आवै॥७॥
Explanation:
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सहेली सुनु सोहिलो रे |
सोहिलो, सोहिलो, सोहिलो, सोहिलो सब जग आज |
पूत सपूत कौसिला जायो, अचल भयो कुल-राज ||
चैत चारु नौमी तिथि सितपख, मध्य-गगन-गत भानु |
नखत जोग ग्रह लगन भले दिन मङ्गल-मोद-निधान ||
ब्योम, पवन, पावक, जल, थल, दिसि दसहु सुमङ्गल-मूल|
सुर दुन्दुभी बजावहिं, गावहिं, हरषहिं, बरषहिं फूल ||
भूपति-सदन सोहिलो सुनि बाजैं गहगहे निसान |
जहँ-तहँ सजहिं कलस धुज चामर तोरन केतु बितान ||
सीञ्चि सुगन्ध रचैं चौकें गृह-आँगन गली-बजार |
दल फल फूल दूब दधि रोचन, घर-घर मङ्गलचार ||
सुनि सानन्द उठे दसस्यन्दन सकल समाज समेत |
लिये बोलि गुर-सचिव-भूमिसुर, प्रमुदित चले निकेत ||
जातकरम करि, पूजि पितर-सुर, दिये महिदेवन दान |
तेहि औसर सुत तीनि प्रगट भए मङ्गल, मुद, कल्यान ||
आनँद महँ आनन्द अवध, आनन्द बधावन होइ |
उपमा कहौं चारि फलकी, मोहिं भलो न कहै कबि कोइ ||
सजि आरती बिचित्र थारकर जूथ-जूथ बरनारि |
गावत चलीं बधावन लै लै निज-निज कुल अनुहारि ||
असही दुसही मरहु मनहि मन, बैरिन बढ़हु बिषाद |
नृपसुत चारि चारु चिरजीवहु सङ्कर-गौरि-प्रसाद ||
लै लै ढोव प्रजा प्रमुदित चले भाँति-भाँति भरि भार |
करहिं गान करि आन रायकी, नाचहिं राजदुवार ||
गज, रथ, बाजि, बाहिनी, बाहन सबनि सँवारे साज|
जनु रतिपति ऋतुपति कोसलपुर बिहरत सहित समाज ||
घण्टा-घण्टि, पखाउज-आउज, झाँझ, बेनु डफ-तार |
नूपुर धुनि, मञ्जीर मनोहर, कर कङ्कन-झनकार ||
नृत्य करहिं नट-नटी, नारि-नर अपने-अपने रङ्ग |
मनहुँ मदन-रति बिबिध बेष धरि नटत सुदेस सुढङ्ग ||
उघटहिं छन्द-प्रबन्ध, गीत-पद, राग-तान-बन्धान |
सुनि किन्नर गन्धरब सराहत, बिथके हैं, बिबुध-बिमान ||
कुङ्कुम-अगर-अरगजा छिरकहिं, भरहिं गुलाल-अबीर |
नभ प्रसून झरि, पुरी कोलाहल, भै मन भावति भीर ||
बड़ी बयस बिधि भयो दाहिनो सुर-गुर-आसिरबाद |
दसरथ-सुकृत-सुधासागर सब उमगे हैं तजि मरजाद ||
बाह्मण बेद, बन्दि बिरदावलि, जय-धुनि, मङ्गल-गान |
निकसत पैठत लोग परसपर बोलत लगि लगि कान ||
बारहिं मुकुता-रतन राजमहिषि पुर-सुमुखि समान |
बगरे नगर निछावरि मनिगन जनु जुवारि-जव-धान ||
कीन्हि बेदबिधि लोकरीति नृप, मन्दिर परम हुलास |
कौसल्या, कैकयी, सुमित्रा, रहस-बिबस रनिवास ||
रानिन दिए बसन-मनि-भूषन, राजा सहन-भँडार |
मागध-सूत-भाट-नट-जाचक जहँ तहँ करहिं कबार ||
बिप्रबधू सनमानि सुआसिनि, जन-पुरजन पहिराइ |
सनमाने अवनीस, असीसत ईस-रमेस मनाइ ||
अष्टसिद्धि, नवनिद्धि, भूति सब भूपति भवन कमाहिं |
समौ-समाज राज दसरथको लोकप सकल सिहाहिं ||
को कहि सकै अवधबासिनको प्रेम-प्रमोद-उछाह |
सारद सेस-गनेस-गिरीसहिं अगम निगम अवगाह ||
सिव-बिरञ्चि-मुनि-सिद्ध प्रसंसत, बड़े भूप के भाग |
तुलसिदास प्रभु सोहिलो गावत उमगि-उमगि अनुराग ||
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