Hindi, asked by badboi37, 10 months ago

(उ) आपके प्रिय
नैसर्गिक घटक का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।​

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Answered by seemajain0008
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Explanation:

अपनी दैनिक गतिविधियों में हम बहुत से ऐसे पदार्थ उत्पादित करते हैं जिन्हें फेंकना पड़ता है। इनमें से अपशिष्ट पदार्थ क्या हैं? जब हम उन्हें फेंक देते हैं तो उनका क्या होता है?

हम  ‘जैव प्रक्रम’ के विषय में जानते है कि हमारे द्वारा खाए गए भोजन का पाचन विभिन्न एंजाइमों द्वारा किया जाता है। विचार कीजिये कि एक ही एंजाइम भोजन के सभी पदार्थों का पाचन क्यों नहीं करता? एंजाइम अपनी क्रिया में विशिष्ट होते हैं। किसी विशेष प्रकार के पदार्थ के पाचन/अपघटन के लिए विशिष्ट एंजाइम की आवश्यकता होती है। इसीलिए कोयला खाने से हमें ऊर्जा प्राप्त नहीं हो सकती। इसी कारण, बहुत से मानव-निर्मित पदार्थ जैसे कि प्लास्टिक का अपघटन जीवाणु अथवा दूसरे मृतजीवियों द्वारा नहीं हो सकता। इन पदार्थों पर भौतिक प्रक्रम जैसे कि ऊष्मा तथा दाब का प्रभाव होता है, परंतु सामान्य अवस्था में लंबे समय तक पर्यावरण में बने रहते हैं। वे पदार्थ जो जैविक प्रक्रम द्वारा अपघटित हो जाते हैं, ‘जैव निम्नीकरणीय’ कहलाते हैं। वे पदार्थ जो इस प्रक्रम में अपघटित नहीं होते ‘अजैव निम्नीकरणीय’ कहलाते हैं। यह पदार्थ सामान्यत: अक्रिय हैं तथा लंबे समय तक पर्यावरण में बने रहते हैं अथवा पर्यावरण के अन्य सदस्यों को हानि पहुँचाते हैं।

पारितंत्र और इसके संघटक

सभी जीव जैसे कि पौधो, जंतु, सूक्ष्मजीव एवं मानव तथा भौतिक कारकों में परस्पर अन्योन्यक्रिया होती है तथा प्रकृति में संतुलन बनाए रखते हैं। किसी क्षेत्र के सभी जीव तथा वातावरण के अजैव कारक संयुक्त रूप से पारितंत्र बनाते हैं। अत: एक पारितंत्र में सभी जीवों के जैव घटक तथा अजैव घटक होते हैं। भौतिक कारक जैसे- ताप, वर्षा, वायु, मृदा एवं खनिज इत्यादि अजैव घटक हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप बगीचे में जाएँ तो आपको विभिन्न पौधो जैसे- घास, वृक्ष, गुलाब, चमेली, सूर्यमुखी जैसे फूल वाले सजावटी पौधो तथा मेंढ़क, कीट एवं पक्षी जैसे जंतु दिखाई देंगे। यह सभी सजीव परस्पर अन्योन्यक्रिया करते हैं तथा इनकी वृद्धि, जनन एवं अन्य क्रियाकलाप पारितंत्र के अजैव घटकों द्वारा प्रभावित होते हैं। अत: एक बगीचा एक पारितंत्र है। वन, तालाब तथा झील पारितंत्र के अन्य प्रकार हैं। ये प्राकृतिक पारितंत्र हैं, जबकि बगीचा तथा खेत मानव निर्मित ; कृत्रिम पारितंत्र हैं।

हम जानते हैं कि जीवन निर्वाह के आधार जीवों को उत्पादक, उपभोक्ता एवं अपघटक वर्गों में बाँटा गया है।  कौन-से जीव सूर्य के प्रकाश एवं क्लोरोफ़िल की उपस्थिति में अकार्बनिक पदार्थों से कार्बनिक पदार्थ जैसे कि, शर्करा ;चीनी एवं मंड का निर्माण कर सकते हैं? सभी हरे पौधो एवं नील-हरित शैवाल जिनमें प्रकाश संश्लेषण की क्षमता होती है, इसी वर्ग में आते हैं तथा उत्पादक कहलाते हैं। सभी जीव प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से अपने निर्वाह हेतु उत्पादकों पर निर्भर करते हैं? ये जीव जो उत्पादक द्वारा उत्पादित भोजन पर प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से निर्भर करते हैं, उपभोक्ता कहलाते हैं। उपभोक्ता को मुख्यत: शाकाहारी, मांसाहारी तथा सर्वाहारी एवं परजीवी में बाँटा गया है।

आहार श्रॄंखला एवं जाल

जीवों की एक श्रॄंखला जो एक-दूसरे का आहार करते हैं। विभिन्न जैविक स्तरों पर भाग लेने वाले जीवों की यह श्रॄंखला  आहार श्रॄंखला का निर्माण करती हैं। आहार श्रॄंखला का प्रत्येक चरण अथवा कड़ी एक पोषी स्तर बनाते हैं। स्वपोषी अथवा उत्पादक प्रथम पोषी स्तर हैं तथा सौर ऊर्जा का स्थिरीकरण करके उसे विषमपोषियों अथवा उपभोक्ताओं के लिए उपलब्ध कराते हैं। शाकाहारी अथवा प्राथमिक उपभोक्ता द्वितीय पोषी स्तर छोटे मांसाहारी अथवा द्वितीय उपभोक्ता तीसरे पोषी स्तर तथा बड़े मांसाहारी अथवा तृतीय उपभोक्ता चौथे पोषी स्तर का निर्माण करते हैं।

हम जानते हैं कि जो भोजन हम खाते हैं, हमारे लिए ऊर्जा स्रोत का कार्य करता है तथा विभिन्न कार्यों के लिए ऊर्जा प्रदान करता है। अत: पर्यावरण के विभिन्न घटकों की परस्पर अन्योन्यक्रिया में निकाय के एक घटक से दूसरे में ऊर्जा का प्रवाह होता है। जैसा कि हम पढ़ चुके हैं, स्वपोषी सौर प्रकाश में निहित ऊर्जा को ग्रहण करके रासायनिक ऊर्जा में बदल देते हैं। यह ऊर्जा संसार के संपूर्ण जैवसमुदाय की सभी क्रियाओं के संपादन में सहायक है। स्वपोषी से ऊर्जा विषमपोषी एवं अपघटकों तक जाती है जैसा कि ‘ऊर्जा के स्रोत’ नामक पिछले आलेख में हमने जाना था कि जब ऊर्जा का एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तन होता है, तो पर्यावरण में ऊर्जा की कुछ मात्रा का अनुपयोगी ऊर्जा के रूप में ह्रास हो जाता है। पर्यावरण के विभिन्न घटकों के बीच ऊर्जा के प्रवाह का विस्तृत अध्ययन किया गया तथा यह पाया गया कि: एक स्थलीय पारितंत्र में हरे पौधो की पत्तयों द्वारा प्राप्त होने वाली सौर ऊर्जा का लगभग 1% भाग खाद्य ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं। जब हरे पौधो प्राथमिक उपभोक्ता द्वारा खाए जाते हैं, ऊर्जा की बड़ी मात्रा का पर्यावरण में ईष्मा के रूप में ह्रास होता है, कुछ मात्रा का उपयोग पाचन, विभिन्न जैव कार्यों में, वृद्धि एवं जनन में होता है। खाए हुए भोजन की मात्रा का लगभग 10% ही जैव मात्रा में बदल पाता है तथा अगले स्तर के उपभोक्ता को उपलब्ध हो पाता है।  अत: हम कह सकते हैं प्रत्येक स्तर पर उपलब्ध कार्बनिक पदार्थों की मात्रा का औसतन 10% ही उपभोक्ता के अगले स्तर तक पहुँचता है।  क्योंकि उपभोक्ता के अगले स्तर के लिए ऊर्जा की बहुत कम मात्रा उपलब्ध हो पाती है, अत: आहार श्रॄंखला सामान्यत: तीन अथवा चार चरण की होती है। प्रत्येक चरण पर ऊर्जा का ह्रास इतना अधिक होता है कि चौथे पोषी स्तर के बाद उपयोगी ऊर्जा की मात्रा बहुत कम हो जाती है।

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Answered by shivajiboraste577
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