उच्चारण से क्या तात्पर्य है ?
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जिस प्रकार से कोई शब्द बोला जाता है; या कोई भाषा बोली जाती है; या कोई व्यक्ति किसी शब्द को बोलता है; उसे उसका उच्चारण (pronunciation)" कहते हैं। भाषाविज्ञान में उच्चारण के शास्त्रीय अध्ययन को ध्वनिविज्ञान की संज्ञा दी जाती है। भाषा के उच्चारण की ओर तभी ध्यान जाता है जब उसमें कोई असाधारणता होती है, जैसे
(क) बच्चों का हकलाकर या अशुद्ध बोलना,
(ख) विदेशी भाषा को ठीक न बोल सकना,
(ग) अपनी मातृभाषा के प्रभाव के कारण साहित्यिक भाषा के बोलने की शैली का प्रभावित होना, आदि।
विभिन्न लोग या विभिन्न समुदाय एक ही शब्द को अलग-अलग तरीके से बोलते हैं। किसी शब्द को बोलने का ढ़ंग कई कारकों पर निर्भर करता है। इन कारकों में प्रमुख हैं - किस क्षेत्र में व्यक्ति रहकर बड़ा हुआ है; व्यक्ति में कोई वाक्-विकार है या नहीं; व्यक्ति का सामाजिक वर्ग; व्यक्ति की शिक्षा, आदि
देवनागरी आदि लिपियों में लिखे शब्दों का उच्चारण नियत होता है किन्तु रोमन, उर्दू आदि लिपियों में शब्दों की वर्तनी से उच्चारण का सीधा सम्बन्ध बहुत कम होता है। इसलिये अंग्रेजी, फ्रेंच आदि भाषाओं के शब्दों के उच्चारण को बताने के लिये अन्तरराष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला (आईपीए) लिपि या आडियो फाइल या किसी अन्य विधि का सहारा लेना पड़ता है। किन्तु हिन्दी, मराठी, संस्कृत, नेपाली आदि के शब्दों की वर्तनी ही उनके उच्चारण के लिये पर्याप्त है।
मुख से अक्षरों को बोलना उच्चारण कहलाता है। सभी वर्णो के लिए मुख में उच्चारण स्थान होते हैं। यदि वर्णों का उच्चारण शुद्ध न किया जाए, तो लिखने में भी अशुद्धियाँ हो जाती हैं, क्योंकि हिंदी एक वैज्ञानिक भाषा है। इसे जैसा बोला जाता है, वैसा ही लिखा भी जाता है।