उच्चारण स्थान के आधार पर बताइए कि स का उच्चारण स्थान क्या है
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वर्णों के उच्चारण स्थान ( uccharan sthan in hindi ) का अपना अलग महत्व है। वर्णो के उच्चारण स्थान से भाषा को शुद्ध रूप में बोलने और समझने आसानी होती है। इसलिए आज हम आपको इस पोस्ट में उच्चारण स्थान की परिभाषा , उच्चारण स्थान के आधार पर वर्णो का वर्गीकरण , वर्णो के वर्गीकरण , वर्ग का उच्चारण स्थान क्या है ? , उच्चारण स्थान की लिस्ट , उच्चारण स्थान की तालिका , वर्णो के उच्चारण स्थान For REET /CTET आदि के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी गई है।
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वर्णों के उच्चारण स्थान (uccharan sthan in hindi)
वर्णों के उच्चारण स्थान (uccharan sthan in hindi) तथा वर्णो का वर्गीकरण
उच्चारण स्थान की परिभाषा
किसी भी वर्ण के उच्चारण में मुखगुहा के जिस भाग का उपयोग होता है, उस भाग को उस वर्ण का उच्चारण स्थान कहते है। भाषा को शुद्ध रूप में बोलने और समझने के लिए विभिन्न वर्णो के उच्चारण स्थानों को जानना आवश्यक है।
हिंदी के वर्णो का उनके उच्चारण स्थान के आधार पर वर्गीकरण :-
1. कण्ठ्य वर्ण :-जिन वर्णो का उच्चारण कंठ से होता है। कंठ से उच्चारित वर्ण जैसे - अ , आ (स्वर) , क, ख , ग, घ, ङ (व्यंजन) और विसर्ग (:)
2. तालव्य वर्ण :- जिन वर्णो के उच्चारण में जिहवा का मध्य भाग तालु से स्पर्श करता है। उन्हें तालव्य वर्ण कहते है। तालु से उच्चारित वर्ण जैसे - इ , ई(स्वर) , च, छ, ज, झ, ञ , य , श (व्यंजन)
3. मूर्द्धन्य वर्ण :- जिन वर्णो के उच्चारण मूर्द्धा से होता है। उन्हें मूर्द्धन्य वर्ण कहते है। मूर्द्धा से उच्चारित वर्ण जैसे- ऋ (स्वर) , ट, ठ, ड, ढ, ण, र, ष (व्यंजन)
4. दन्त्य वर्ण :- जिन वर्णो के उच्चारण में जिहवा का अग्र भाग दन्त से स्पर्श करता है। उन्हें दन्त्य वर्ण कहते है। दन्त से उच्चारित वर्ण जैसे- लृ , त, थ, द, ध, न, ल, स (सभी व्यंजन)
5. ओष्ठ्य वर्ण :- जिन वर्णो के उच्चारण में दोनों होठ स्पर्श करते है। उन्हें ओष्ठ्य वर्ण कहते है। ओष्ठ से उच्चारित वर्ण जैसे- उ ,ऊ (स्वर) , प, फ, ब, भ, म (व्यंजन)
6. नासिक्य वर्ण :- जिन वर्णो का उच्चारण मुँह और नाक दोनों से होता है। उन्हें नासिक्य वर्ण कहते है। नासिका से उच्चारित वर्ण जैसे- अं , ङ, ञ , ण , न , म
7. कंठतालव्य वर्ण :- जिन वर्णो के उच्चारण में कंठ तथा तालु दोनों का सहयोग होता है। उन्हें कंठतालव्य वर्ण कहते है। कंठ-तालु से उच्चारित वर्ण जैसे- ए , ऐ
8. कंठोष्ठ्य वर्ण :- जिन वर्णो के उच्चारण में कंठ तथा ओष्ठ दोनों का सहयोग होता है। उन्हें कंठोष्ठ्य वर्ण कहते है। कंठ-ओष्ठ से उच्चारित वर्ण जैसे - ओ , औ
9. दन्तोष्ठ्य वर्ण :- जिन वर्णो के उच्चारण में दन्त तथा ओष्ठ दोनों का सहयोग होता है। उन्हें दन्तोष्ठ्य वर्ण कहते है। दन्त-ओष्ठ से उच्चारित वर्ण जैसे - व
10. वर्त्स्य वर्ण :- जिन अरबी-फ़ारसी वर्णो के उच्चारण ऊपर वाले मसूड़ों के कठोरतम भाग से होते है , उन्हें वर्त्स्य वर्ण कहते है। वर्त्स्य से उच्चारित वर्ण जैसे - फ़ और ज़।
11. जिह्वामूलक वर्ण :- जिन अरबी- फ़ारसी वर्णो का उच्चारण जिहवा के पीछे के भाग से होता है। उन्हें जिह्वामूलक वर्ण कहते है। जिह्वामूलक से उच्चारित वर्ण जैसे - क़ , ख़ और ग़।
12. अलिजिह्वा/काकल्य वर्ण :- जिन वर्णो के उच्चारण में मुख खुला रहता है , तथा वायु कंठ को खोलकर झटके से बाहर निकलती है। उन्हें अलिजिह्वा वर्ण या काकल्य वर्ण कहते है। जैसे - ह।
उच्चारण की दृष्टि से व्यंजन वर्णो का वर्गीकरण :-
उच्चारण की दृष्टि से व्यंजन वर्णो को आठ भागो में बाँटा जा सकता है।
1. स्पर्शी :- जिन व्यंजनों के उच्चारण में फेफड़ों से छोड़ी जाने वाली हवा वाग्यंत्र के किसी अवयव का स्पर्श करती है और फिर बाहर निकलती है। निम्नलिखित व्यंजन स्पर्शी है :
क् ख् ग् घ् ; ट् ठ् ड् ढ् ; त् थ् द् ध् ; प् फ् ब् भ् ;
2. संघर्षी :- जिन व्यंजनों के उच्चारण में दो उच्चारण अवयव इतनी निकटता पर आ जाते है कि बीच का मार्ग छोटा हो जाता है तब वायु उनसे घर्षण करती हुई निकलती है। ऐसे संघर्षी व्यंजन है -
श् , ष् , स् , ह् , ख् , ज् , फ्
3. स्पर्श संघर्षी :- जिन व्यंजनों के उच्चारण में स्पर्श का समय अपेक्षाकृत अधिक होता है और उच्चारण के बाद वाला भाग संघर्षी हो जाता है , वे स्पर्श संघर्षी कहलाते है।
च् , छ , ज् , झ
4. नासिक्य :- जिनके उच्चारण में हवा का प्रमुख अंश नाक से निकलता है। वे नासिक्य व्यंजन कहलाते है।
ङ, ञ , ण , न , म
5. पार्श्विक :- जिनके उच्चारण में जिह्वा का अगला भाग मसूड़े को छूता है और वायु पार्श्व आस-पास से निकल जाती है ,वे पार्श्विक है। जैसे - ल्
6. प्रकम्पित :- जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा को दो तीन बार कम्पन करना पड़ता है वे प्रकम्पित कहलाते है। जैसे - र
7. उत्क्षिप्त :- जिनके उच्चारण में जिह्वा की नोक झटके से निचे गिरती है तो वह उत्क्षिप्त (फेंका हुआ) ध्वनि कहलाती है। ड़ , ढ़ उत्क्षिप्त ध्वनियाँ है।
8. संघर्ष हीन :- जिन ध्वनियों के उच्चारण में हवा बिना किसी संघर्ष के बाहर निकल जाती है वे संघर्षहीन ध्वनियाँ कहलाती है। जैसे - य , व। इनके उच्चारण में स्वरों से मिलता जुलता प्रयत्न करना पड़ता है , इसलिए इन्हे अर्धस्वर भी कहते है।
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