उच्च शिशु मृत्यु दर का कारण है
Answers
Answer:
all are humans but those who arereasons for this they can't understand
Explanation:
एसआरएस यानि सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के द्वारा जारी ताजा आंकड़े मध्यप्रदेश में स्वास्थ्य की बदहाली को उजागर कर रहे हैं। मई महीने में जारी इस रिपोर्ट में वर्ष 2017 के आंकड़े जारी किए गए हैं। इसके मुताबिक मध्यप्रदेश में शिशु मृत्यु दर देश में सबसे अधिक 47 बच्चे प्रति हजार है, इसका मतलब प्रदेश में जन्म लेने वाले 1000 बच्चों में से 47 बच्चों की मृत्यु पांच साल के भीतर ही हो जाती है। पूरे देश में यह दर 33 है। मध्यप्रदेश के ग्रामीण इलाकों में यह आंकड़े और भी भयावह हैं। यहां की दर 51 बच्चे प्रति हजार है। मध्यप्रदेश शिशु मृत्यु दर के मामले में देश में पहले पायदान पर है। मध्यप्रदेश में शिशु मृत्यु दर के मामले में पिछले दो वर्षों से कोई सुधार नहीं देखा गया है। साल 2016 में भी यह दर 47 ही था। देश में सबसे कम शिशु मृत्यु दर नगालैंड का है जो कि सात बच्चे प्रति हजार जन्म है।
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के मुताबिक स्वास्थ्य सुविधाओं में लगातार सुधार हो रहा है और ये आंकड़े भविष्य में बेहतर होंगे। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के उप संचालक डॉ. मनीष सिंह कहते हैं कि वे कुछ और आंकड़ों का इंतजार कर रहे हैं जिसके आधार पर आगे की योजना तय होगी। नवजात मृत्यु दर के आंकड़े आने के बाद यह तय हो पाएगा कि जन्म से 28 दिन तक, 28 दिन से 1 साल तक और एक साल से 5 साल तक के बच्चों में मृत्यु दर का अलग-अलग क्या प्रतिशत है।शिशु मृत्यु की वजहों पर बात करते हुए डॉ. मनीष ने कहा कि कई शोध दिखाते हैं कि प्रदेश में शिशु मृत्यु की एक बड़ी वजह प्री मैच्योरिटी यानि समय से पहले बच्चे की डिलिवरी, दूसरी वजह महिला को प्रसव के दौरान स्वास्थ्य सुविधाओं में कमी और तीसरी वजह संक्रमण है। बड़े बच्चों में निमोनिया और दस्त रोग मृत्यु की बड़ी वजह बनते हैं।
बच्चों के स्वास्थ्य और अधिकार पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता सचिन कुमार जैन बताते हैं कि स्वास्थ्य के मामले में प्रदेश की स्थिति काफी भयावह है। बाल विवाह जैसी प्रथा का भी स्वास्थ्य पर काफी बुरा असर हो रहा है और प्रदेश में सामाजिक वजहों से बाल विवाह पर लगाम नहीं लग रहा है, बल्कि बाल विवाह को कई स्थानों पर राजनीतिक संरक्षण भी मिलता है। इसके अलावा आउटरीच स्वास्थ्य सेवाएं यानि घर तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने के मामले में भी सरकार कुछ बेहतर नहीं कर पा रही। सचिन कहते हैं कि स्वास्थ्य विभाग का ध्यान हॉस्पिटल में प्रसव की तरफ तो है पर अस्पताल की सुविधाएं कई स्थानों पर अब भी लचर ही है। पोषण आहार के मामले में विभागों में जमकर घोटाले हुए हैं, लेकिन न भाजपा और न ही कांग्रेस इस मामले को गंभीरता से ले रही है।
सामाजिक कार्यकर्ता राकेश मालवीय ने प्रसव स्वास्थ्य को सामाजिक कुरीतियों से जोड़ते हुए बताया कि लड़के और लड़कियों में भेदभाव अब भी देखा जा रहा है और इस वजह से लड़कियों के पोषण पर ध्यान नहीं दिया जाता। कुपोषित मां एक कुपोषित बच्चे को जन्म देगी जो कि अधिक दिन तक जीवित नहीं रह पाएगा। उन्होंने प्रसव के दौरान महिलाओं के खानपान की बदलती आदतों पर भी चिंता जाहिर की। गांव से लेकर शहर तक महिलाएं प्रसव के दौरान पारंपरिक खानपान को नहीं अपना पाती। ग्रामीण इलाकों में सूखे और बेरोजगारी की वजह से महिलाओं को गर्मियों में दूर दूर पानी और रोजगार के लिए गर्भावस्था में भी जाना होता है। सरकार को ऐसी वजहों पर शोध कर इसके उपाए निकालने होंगे, तभी शिशुओं की मृत्यु को कम किया जा सकता है।