उच्यते-कीटोऽपि सुमनः संङ्गदारोहति सतां शिरः।अश्मापि याति देवत्वं महद्भिः सुप्रतिष्ठितः॥
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अन्वयः- (मनुष्यः) वृत्तं यत्नेन संरक्षेत्। वित्तं (तु) ऐति च याति च।वित्ततः क्षीणः अक्षीणः (भवति) व्रत्ततः तु हतः हतः।
शब्दार्थः : वृत्तम्-चरित्र, वित्तं – धन, यत्नेन- प्रयत्नपूर्वक, संरक्षेत- रक्षा करनी चाहिए, अक्षीण: - जो क्षीण नहीं हुआ।
अर्थात
धन तो आता और जाता रहता है (पर) अपने चरित्र की रक्षा यत्नपूर्वक करनी चाहिए। धन से क्षीण हो जाने पर भी मनुष्य नष्ट नहीं होता; पर यदि उसका चरित्र नष्ट हो गया तो वह संपूर्णतः नष्ट हो गया ।
श्रूयतां धर्म सर्वस्वं श्रुत्वा चैवावधार्यताम्।
आत्मन्: प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्।। (विदुरनीतिः)
अन्वयः - (भो जनाः) धर्म सर्वस्वं श्रूयताम्। श्रुत्वा च एव अवधार्यताम्। आत्मनः प्रतिकूलानि ( तानि) परेषां न समाचरेत्।
शब्दार्थः श्रूयतां- सुना जाये, धर्मसर्वस्वं- धर्म का सार, अवधार्यताम- समझा जाये
अर्थ:- (हे लोगो) धर्म का सार सुनिये। सुन कर समझ लें कि जो (व्यवहार) अपने लिये प्रतिकूल लगे, उसे दूसरों के प्रति आचरण न करे।
प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।
तस्माद् तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता।। (चाणक्यनीतिः