Udhav braj kyun aaye thay ??
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उद्धव भागवत के अनुसार श्रीकृष्ण के प्रिय सखा और साक्षात बृहस्पति के शिष्य थे। महामतिमान उद्धव वृष्णिवंशीय यादवों के माननीय मन्त्री थे। उनके पिता का नाम 'उपंग' कहा गया है। कहीं-कहीं उन्हें वसुदेव के भाई 'देवभाग' का पुत्र कहा गया है, अत: उन्हें श्रीकृष्ण का चचेरा भाई भी बताया गया है। एक अन्य मत के अनुसार ये सत्यक के पुत्र तथा कृष्ण के मामा कहे गये हैं।
जब गोपियों को ज्ञात हुआ कि उद्धव भगवान श्रीकृष्ण का संदेश लेकर आये हैं, तब उन्होंने एकान्त मिलने पर उद्धव को घेरकर श्यामसुन्दर का समाचार पूछा। उद्धव जी ने कहा- "ब्रजदेवियों! श्रीकृष्णचन्द्र तो सर्वव्यापी हैं। वे तुम्हारे हृदय में तथा समस्त जड-चेतन में व्याप्त हैं। उनसे तुम्हारा वियोग कभी हो ही नहीं सकता। उनमें भगवद्बुद्धि करके तुम सर्वत्र उनको ही देखो।" गोपियां रो पड़ीं। उनके नेत्र झरने लगे। उन्होंने कहा- "उद्धव जी ! आप ठीक कहते हैं। हमें भी सर्वत्र वे मयूर-मुकुटधारी ही दीखते हैं। यमुना पुलिन में, वृ़क्षों में, लताओं में, कुंजों में-सर्वत्र वे कमललोचन ही दिखायी पड़ते हैं हमें। उनकी वह श्याम मूर्ति हृदय से एक क्षण को भी हटती नहीं।" अनेक प्रकार से वे विलाप करने लगीं। प्रियतम का सन्देश सुनकर गोपियों को बड़ी प्रसन्नता हुई तथा उन्हें शुद्ध ज्ञान प्राप्त हुआ। उन्होंने प्रेम विह्वल होकर कृष्ण के मनोहर रूप और ललित लीलाओं का स्मरण करते हुए अपनी घोर वियोग-व्यथा प्रकट की तथा भावातिरेक की स्थिति में कृष्ण से ब्रज के उद्धार की दीन प्रार्थना की। परन्तु श्रीकृष्ण का सन्देश सुनकर उनका विरह ताप शान्त हो गया। उन्होंने श्रीकृष्ण भगवान को इन्द्रियों का साक्षी परमात्मा जानकर उद्धव का भली-भाँति पूजन और आदर-सत्कार किया। उद्धव कई महीने तक गोपियों का शोक-नाश करते हुए ब्रज में रहे।
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udhav braj gopiyon ke liye yog sandesh le kr aye the jo krishna ne gopiyon ke liye bhijvaya tha , gopiyon ko laga tha ki krishna swaym ayenge par aisa nhi hua aur krishna ke sthan par udhav to dekh kar veh virah ki agni me aur adhik jalne lage aur kehne lagi ki udhav ab rajneeti seekh chuke h aur unhe apni praja ki koi chinta nhi rhi h
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