* उजालों की आस तो जायज है, पर अँधेरों को अपनाओ तो एक बार । बिन पानी के बंजर जमीन पे, बरसाओ मेहनत की बूंदों की फुहार ।। जिंदगी की बड़ी जरूरत है हार ....! जीत का आनंद भी तभी होगा, जब हार की पीड़ा सही हो अपार । आँसू के बाद बिखरती मुस्कान, और पतझड़ के बाद मजा देती है बहार ।। जिंदगी की बड़ी जरूरत है हार .... !*.
पंक्तियों का सरल अर्थ
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उजालों की आस तो जायज है, पर अँधेरों को अपनाओ तो एक बार।
बिन पानी के बंजर जमीन पे, बरसाओ मेहनत की बूंदों की फुहार।।
जिंदगी की बड़ी जरूरत है हार ....!
जीत का आनंद भी तभी होगा, जब हार की पीड़ा सही हो अपार।
आँसू के बाद बिखरती मुस्कान, और पतझड़ के बाद मजा देती है बहार।।
जिंदगी की बड़ी जरूरत है हार .... !
➲ यह पंक्तियां ‘संतोष मडकी’ द्वारा रचित कविता “जिंदगी की बड़ी जरूरत है हार” से ली गई है। इन पंक्तियों का सरल इस प्रकार है...
सरल अर्थ ⦂ कवि कहते हैं कि हर व्यक्ति अपने जीवन में सफलता रूपी प्रकाश चाहता है। किसी भी व्यक्ति का अपने जीवन में प्रकाश अर्थात सफलता की उम्मीद करना उचित ही है, लेकिन हमें अंधेरों अर्थात हार को भी स्वीकार करने का साहस होना चाहिए। जीवन में हार और जीत अर्थात अंधकार एवं प्रकाश लगे रहते हैं।
कवि कहते हैं, जमीन उपजाऊ होती है और पानी की व्यवस्था ठीक-ठाक हो तो फसल आसानी से उगाई जा सकती है लेकिन बंजर जमीन पर कड़ा परिश्रम करके पानी के अभाव में अपने पसीने की बहारों की बौछार से फसल उगाना एक अलग ही उपलब्धि है। हो सकता है, कि इस काम में सफलता न भी मिले तो भी कोई बात नहीं। जिंदगी में हार भी जरूरी है, लेकिन हार के डर से परिश्रम करना छोड़ देना सबसे बड़ी हार है।
इसलिए जब हम कोई कार्य करेंगे तो जीत या हार तो होगी, इसलिए हार होने पर उसके अनुभव से नए उत्साह और जोश के साथ पुनः नया प्रयास करने से ही सफलता मिलती है। हार हमें एक नया अनुभव और नया सबक देकर जाती है, इसलिए जीवन में हार जरूरी है क्योंकि वही हमें कुछ सिखाती है।
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