उल्बवेधन एक घातक लिंग निर्धारण (जाँच) प्रक्रिया है, जो हमारे देश में निषेधित है? क्या यह आवश्यक होना चाहिए? टिप्पणी करें।
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उल्बवेधन एक घातक लिंग निर्धारण (जाँच) प्रक्रिया है, जो हमारे देश में निषेधित है यह आवश्यक नहीं होना चाहिए।
उल्बवेधन तकनीक जन्म से पूर्व भ्रूण के स्वास्थ्य, लिंग या अनुवांशिक संरचना ज्ञात करने में सहायक है।
परिवर्तित भ्रूण माता के गर्भाशय में उल्बद्रव में डूबा रहता है। इस द्रव की कुछ मात्रा सुई के द्वारा बिना भ्रूण को क्षति पहुंचाए नमूने के रूप में निकाल लिया जाता है । द्रव में उपस्थित कोशिकाओं का संवर्धन करने के पश्चात कोशिकाओं के गुणसूत्रों का निरीक्षण करके उनमें उपस्थित रोगों का अध्ययन करते हैं।
यदि भ्रूण को जन्मजात ठीक न होने वाला रोग हो तो गर्भधारण की प्रारंभिक अवस्था में भ्रूण का चिकित्सीय सगर्भता समापन (MTP) कर देते हैं। इस तकनीक का दुरुपयोग भ्रूण के लिंग पहचानने के लिए भी किया जाता है जो गैरकानूनी है। भ्रूण के मादा होने का पता चलने पर अक्सर गर्भपात करा दिया जाता है जो एक दंडनीय अपराध है । अतः भारत ने प्रीनाटल डाइग्नोस्टिक तकनीक एक्ट,1994 लागू किया है। जिसके अनुसार सभी अनुवांशिक सुझाव केंद्र एवं प्रयोगशालाओं का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य हो गया है एवं इसमें सजा का भी प्रावधान है।
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