उमा की मांँ प्रेमा के चित्र पर प्रकास डालिए?
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धुल-धुलकर धूमिल हो जाने वाले पुराने काले
लहँगे को एक विचित्र प्रकार से खोंसे, फटी मटमैली ओढ़नी को कई फेंट देकर कमर
मे लपेटे और दाहिने हाथ मे एक बड़ा सा हँसिया सँभाले लछमा, नीचे पड़ी घास
पत्तियों के ढेर पर कूदकर खिलखिला उठी। कुछ पहाड़ी और कुछ हिन्दी की खिचड़ी
में उसने कहा- ‘ हमारे लिये क्या डरते हो! हम क्या तुम्हारे जैसे आदमी है!
हम तो है जानवर! देखो हमारे हाथ पाँव देखो हमारे काम! ‘ मुक्त हँसी से भरी
पहाड़ी युवती, न जाने क्यो मुझे इतनी भली लगती है
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