Hindi, asked by mokxaamurari, 6 months ago

उमा
:
। मुझे यह बात बुरी
वह बोली, "बहन मैं मानती हूँ माँ-बेटे के संबंध से बढ़कर
और कोई संबंध नहीं है। पति भी वह, जिसके लिए उसने
समाज की ही नहीं, वरन अपने हृदय की साक्षी दी है, जिसे
उसको दुखी करके, वह किसी को सुखी करने की कल्पना से
माँ : (उत्सुकता से) तो उसने क्या कहा ?
वह प्यार करती है। उसके कहने पर वह प्राण दे सकती है, पर
नहीं कर सकती।" करेगी तो वह पापिन है। सोचो, तुम स्वयं
पत्नी हो। यद्यपि तुमने मेरी तरह पति का वरण नहीं किया है.
फिर भी तुम उन्हें प्यार करती हो
लगी, मैंने कहा, "सब पत्नियाँ अपने पतियों को प्यार करती हैं,
मैं भी करती हूँ, प्राणों से अधिक प्यार करती हूँ।" सुनकर वे
घबरायी, नहीं, चौकी भी नहीं, बोली, "सब की बात मैं नहीं
जानती। इतना अधिकार मेरा नहीं है, पर मैं जानती हूँ, तुम अपने
पति को प्यार करती हो, तभी तो यहाँ आई हो। मैं अतुल को भी
जानती हूँ उनका भाई है वह भी। कई बार मेरे पास आया है।
माँ : (हठात चौंककर) अतुल वहाँ गया है !
उमा : हाँ माता जी, उन्होंने यही कहा था। मुझे भी अचरज हुआ। मैंने
पूछा, "वे यहाँ आते हैं ?" तो हँसकर बोली, "डरो नहीं। वे
भाई के पास नहीं आते, दफ़्तर के काम से आते हैं। तुम्हारी बातें
उन्होंने ही मुझे बताई हैं। मैं जानती हूँ तुम उन्हें प्यार करती हो।"
सोचो तो, कोई तुमसे कहे- तुम अतुल को छोड़ दो, क्योंकि
उनकी माँ या उनका परिवार इस विवाह से नाराज़ हैं, तो क्या
तुम " मैं आगे न सुन सकी। मैंने चिल्लाकर कहा,
"भाभी, बस करो पर उन्होंने बात पूरी करके दम
लिया, बोली "तो क्या तुम उन्हें छोड़ दोगी, बोलो
तब मैंने त्रस्त होकर कहा था, "नहीं भाभी ! मैं नहीं छोड़
सकूँगी। चाहूँ तब भी नहीं।" सुनकर वे मुस्कराईं, कहने लगी,
7. गवाही 8. चुनाव
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Answered by rinkutiwari8584
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