India Languages, asked by basitaktk882, 9 months ago

उमायाः पितामहेन कति सेटकमितं दुग्धम् अपेक्ष्यते स्म ?

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Answered by mittalraval580120
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) राष्ट्रभाषा का शाब्दिक अर्थ है- समस्त राष्ट्र में प्रयुक्त भाषा अर्थात आम जन की भाषा (जनभाषा) । जो भाषा समस्त राष्ट्र में जन-जन के विचार-विनिमय का माध्यम हो, वह राष्ट्रभाषा कहलाती है।

(2) राष्ट्रभाषा राष्ट्रीय एकता एवं अंतर्राष्ट्रीय संवाद-सम्पर्क की आवश्यकता की उपज होती है। वैसे तो सभी भाषाएँ राष्ट्रभाषाएँ होती हैं किन्तु राष्ट्र की जनता जब स्थानीय एवं तात्कालिक हितों व पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर अपने राष्ट्र की कई भाषाओं में से किसी एक भाषा को चुनकर उसे राष्ट्रीय अस्मिता का एक आवश्यक उपादान समझने लगती है तो वही राष्ट्रभाषा है।

(3) स्वतंत्रता--संग्राम के दौरान राष्ट्रभाषा की आवश्यकता होती है। भारत के संदर्भ में इस आवश्यकता की पूर्ति हिन्दी ने किया। यही कारण है कि हिन्दी स्वतंत्रता-संग्राम के दौरान (विशेषतः 1900 ई०-1947 ई०) राष्ट्रभाषा बनी।

(4) राष्ट्रभाषा शब्द कोई संवैधानिक शब्द नहीं है बल्कि यह प्रयो

Answered by farooq29khan
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चैतन्य संप्रदाय के गदाधर भट्ट, राधा-वल्लभ संप्रदाय के हित हरिवंश (श्री कृष्ण की बाँसुरी के अवतार) एवं संप्रदाय-निरपेक्ष कवियों में रसखान, मीराबाई आदि प्रमुख कृष्णभक्त कवियों ने ब्रजभाषा के साहित्यिक विकास में अमूल्य योगदान दिया। इनमें सर्वप्रमुख स्थान सूरदास का है जिन्हें 'अष्टछाप का जहाज' कहा जाता है। उत्तर मध्यकाल (अर्थात रीतिकाल) में अनेक आचार्यो एवं कवियों ने ब्रजभाषा में लाक्षणिक एवं रीति ग्रंथ लिखकर ब्रजभाषा के साहित्य को समृद्ध किया। रीतिबद्ध कवियों में केशवदास, मतिराम, बिहारी, देव, पद्माकर, भिखारी दास, सेनापति, मतिराम आदि तथा रीतिमुक्त कवियों में घनानंद, आलम, बोधा आदि प्रमुख हैं। (ब्रजबुलि- बंगाल में कृष्णभक्त कवियों द्वारा प्रचारित भाषा का नाम।)

अवधी : अवधी को साहित्यिक भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने का श्रेय सूफी/प्रेममार्गी कवियों को

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