"...उन जंजीरों को तोड़ने का जिनमें वे जकड़े हुए हैं, कोई-न-कोई तरीका लोग निकाल ही लेते हैं...' आपके विचार से लेखक 'जंजीरों' द्वारा. किन समस्याओं की ओर इशारा कर रहा है?
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"...उन जंजीरों को तोड़ने का जिनमें वे जकड़े हुए हैं, कोई-न-कोई तरीका लोग निकाल ही लेते हैं...' आपके विचार से लेखक 'जंजीरों' द्वारा. किन समस्याओं की ओर इशारा कर रहा है?
व्याख्या:
इन पंक्तियों में ‘जंजीर’ के माध्यम से लेखक की उन रूढ़िवादी कुरीतियों और पिछड़ेपन की ओर इशारा कर रहा है, जिन के बंधन में तमिलनाडु पुदुकोट्टई जिले की महिलाएं बंधी हुई थीं।
‘जहाँ पहिया है’ पाठ में तमिलनाडु के पुडुकोट्टई जिले में महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। ना ही उनमें जागृति थी और ना ही वे अधिक पढ़ी लिखी थीं। वे रूढ़ीवादी थीं, कुरीतियों और पिछड़ेपन आदि जैसी जंजीरों के बंधनों में बंधी हुई थीं।
यहाँ पर लेखक ने इन्ही कुरीतियों को ‘जंजीर’ माना हुआ है।
Answer:
उन जंजीरों को तोड़ने का जिनमें वे जकडे हुए हैं, कोई-न-कोई तरीका लोग निकाल ही लेते है.. लेखक के इस कथन से हम सहमत हैं क्योंकि मनुष्य स्वभावानुसार अधिक समय तक बंधनों में नहीं रह सकते। समाज द्वारा बनाई गई रूढ़ियाँ अपनी सीमाओं को लाँघने लगे तो समाज में इसके विरूद्ध एक क्रांति अवश्य जन्म लेती है।